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अप्रकाशित कृति परिचय लेखमाला-लेख-१८ उपदेशमाला का टबार्थ : कृति परिचय संजय कुमार झा

एक दृष्टि में कृति परिचय : कृतिनाम- उपदेशमाला का टबार्थ। तपागच्छाधिपति आचार्य श्रीविजयप्रभसूरि के साम्राज्य में श्री धीरविमल गणि के शिष्य आचार्य श्री ज्ञानविमलसूरि के द्वारा टबार्थ की रचना हुई है। टबार्थ की भाषा-मा.गु., कृति प्रकार-गद्य। विषय-औपदेशिक, लेखन व रचना संवत्-१७३२ व रचना स्थल-अज्ञात। टबार्थकार के हाथों से लिखी गई हस्तप्रत है। एकमात्र ही हस्तप्रत है। वर्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।

कहीं-कहीं पाठ संशोधित, टिप्पण व पदच्छेदयुक्त है। समर्थ विद्वान के द्वारा लिखित प्रत होने से प्रत शुद्धप्रायः प्रतीत होती है। अन्त में प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन पुष्पिका में पक्षगुणर्षिमेदिनीमिते का स्पष्ट उल्लेख किया होने से १७३२ वर्ष स्पष्ट होता है। ज्ञानविमलसूरि का दो स्थलों पर उल्लेख है। एक टबार्थ के अन्त में तथा दूसरा उपदेशमाला बीजक के अन्त में। अन्त में उपदेशमाला-बीजक भी वाचकों हेतु उपयोगी विषय है। प्रतिलेखन पुष्पिका इस प्रकार है-

वर्षे पक्षगुणर्षिमेदिनिमिते राधोग्रराकादिने, सूरिश्रीविजयप्रभाभिधगुरौ साम्राज्यमाबिभ्रति। श्रीविनयाद्विमलक्रमाब्जमधुकृत् सेवासुधी(धा)रामल प्राज्ञप्राज्यनयादिमेन विमलेनैतत् स्फुटं लिख्यते ॥१॥

दूसरी संलग्न कृति उपदेशमाला बीजक के अन्त में भी लिखा है-लिवीकृतं पं। नयविमलगणिना पं। श्रीदेवविमलगणिव्याख्यानकृते ऐसा उल्लेख मिलता है।

कृति व कर्ता परिचय-प्रस्तुत कृति धर्मदास गणि रचित उपदेशमाला का टबार्थ है। टबार्थ को स्तबक, स्तबुक व टब्बा नाम से भी जाना जाता है। इस टबार्थ को यहाँ वार्तिक नाम से टबार्थकार ने उल्लेख किया है। टबार्थकार समर्थ विद्वान स्वनामधन्य तपागच्छीय आचार्य श्रीविजयप्रभसूरि के साम्राज्य में श्रीधीरविमल गणि के शिष्य नयविमल गणि (ज्ञानविमल) हैं। इस कृति के लेखन व रचना काल में गणिपदारूढ थे, यह सिद्ध होता है।

टबार्थ का भी अपना एक अलग महत्त्व है। मूलपाठ के पदों को क्रमशः समझाते हुए अर्थ करना टबार्थ में प्रायः पाया जाता है। कई बार टबार्थ और बालावबोध दोनों परस्पर मिला भी होता है। टबार्थ व बालावबोध दोनों की लेखन शैली अलग-अलग होती है। यदि मंगलाचरण में टबार्थ व बालावबोध का उल्लेख नहीं होता है तो उसकी शैली से ही ज्ञात होता है कि यह टबार्थ है या बालावबोध। टबार्थ मूलपाठ के प्रत्येक पद के ऊपर लिखा होता है और बालावबोध मूल पाठ के बाद क्रमशः आजकल के विवेचन जैसा लिखा होता है। इन दोनों की भाषा प्रायः देशीकुल की होती है। आजकल की रचनाओं में टबार्थ प्रकार नहीं मिलता, परन्तु हस्तप्रतों में टबार्थ प्रकार समृद्ध पाया गया है। उपाध्याय श्री यशोविजय गणि ने अपनी कृतियों पर स्वोपज्ञ टबार्थ रचा भी है और लिखा भी है। इसी तरह प्रस्तुत टबार्थ की रचना आचार्य श्री ज्ञानविमलसूरि ने की तथा स्वयं ही लेखन कार्य किया। कर्ता के हाथ से लिखी हुई प्रत होने से उस प्रत एवं कृति की विश्वसनीयता, प्रामाणिकता और शुद्धता सम्पादन-संशोधन के लिये श्रेष्ठतम हो जाती है।

उपदेशमाला के टबार्थ का मंगलाचरण एवं प्रारम्भिक पाठ-

श्रीमत्पार्श्वेश्वरमानम्य, करोमि मुग्धबोधकृते ।
स्पष्टं टबार्थरूपं वार्त्तिकमुपदेशमालायाः ॥१॥

ग्रन्थनी आदि मंगलीक भणी पहिलुं नमस्कारपूर्वक गाथा पूर्वाचार्यकृत नमिऊण० एहनो अर्थ।

उपदेशमाला के टबार्थ का प्रशस्तिपाठ व अन्तिम पाठांश-

वृत्तिर्विशेषतो रम्या, हेयोपादेयकर्णिका ।
यद्यस्त्यस्यास्तथापीय, मुक्तिर्ग्राह्याग्रहेण च ॥१॥

पूर्णपक्वान्नसौहित्ये रसिकैरुह्यकरंबवत् ।
तथा साहित्यसौहित्यैः, स्वाद्यमेतत् सुवार्तिकम् ॥२॥

वर्षे पक्षगुणर्षिमेदिनिमिते, राधोग्रराकादिने ।
सूरिश्रीविजयप्रभाभिधगुरौ साम्राज्यमाबिभ्रति ।

श्रीविनयाद्विमलक्रमाब्जमधुकृत्सेवासुधीरामल-
प्राज्ञप्राज्यनयादिमेनविमलेनैतत् स्फुटं लिख्यते ॥१॥

वाचक व संशोधकों से नम्र निवेदन है कि इस कृति को संपादन-संशोधन के द्वारा ज्ञानयज्ञ में सहभागी होकर व श्रुतसेवा में हाथ बँटाकर जनहित हेतु उपकारी बनें। जैन शास्त्रों में उपदेशमाला ग्रन्थ एक महत्त्वपूर्ण औपदेशिक ग्रन्थ है। इस पर आचार्य श्रीज्ञानविमलसूरिजी का टबार्थ सबके लिये विशेष बोधप्रद होगा। इसके प्रकाशन से वाचकों को एक नई कृति का दर्शन होगा। अन्य टीका आदि के साथ तुलना करने पर कुछ न कुछ नई जानकारी मिलेगी। आपकी जिज्ञासा की पिपासा को तृप्त करना ही हमारा लक्ष्य व ध्येय है। हमें आप अपना अमूल्य अभिप्राय अवश्य दें। अलमिति विस्तरेण।

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