समयना वहेणने पारखी साहित्यनी सर्जना करता आपणा पूर्वाचार्योए मध्यकाळमां मारुगुर्जर भाषामां घणी रचनाओ करी छे। जेमांनी केटलीक तात्त्विक छे, तो केटलीक साहित्यिक, केटलीक भक्तिभाव प्रधान छे, तो केटलीक ऐतिहासिक छे। आजे आपणे ते ज श्रेणिमां रचायेल एक ऐतिहासिक लघु कृतिनो अहीं परिचय जोईशुं।
मूळे पंजाब प्रांतना कुज्जरांवाला(गुजरानवाला)ना नवा प्रासादमां प्रभुनी(?) प्रतिष्ठा वर्णनाने दर्शावती आ स्तवनामां कुल ९ ढाळो छे। कृतिकारे अहीं कृतिनो प्रारंभ प्रभु वीरनी तथा पोताना गुरुभगवंतोनी स्तवनाथी करी त्यार पछीना ३ दुहाओमां कृतिरचना प्रयोजनने आलेख्युं छे। खास आ दुहाओमां पोताना धर्माचार्य तरीके बुद्धिविजय, पूनमचंद, भावविजय तथा मानकचंद होवानी, घणा ओसवालो द्वारा ते जिनमंदिरमां पूजा थती होवाथी तथा सं.१९२० मां ते जिनालय तैयार थयुं होवानी विगत कृतिगत महत्त्वपूर्ण नोंधो छे।
आम दुहाओ द्वारा कृतिरचनानी पीठिका बांधी कृतिनी पहेली ढाळमां कृतिकारे मूळ कृतिनी वर्णनानो प्रारंभ कर्यो छे। आ ढाळना प्रथम ७ पद्योमां तेमणे प्रतिष्ठानुं मुहूर्त कोणे काढ्युं?, क्यारनुं काढ्युं?, प्रतिमाजी कयां तथा कोना वडे लवाया? कई रीते पत्रिकाओ लखाई? विगेरे विगतो आलेखी ढाळनां छेल्लां पद्योमां प्रतिष्ठाना दिवसो नजीक आव्ये कई रीते स्नात्र करायुं तेनी विगतो प्रारंभी छे। खास आ विधिविधान माटे जंडिआलाथी श्रीपूज्य राम ऋषि पधार्यानी वात अहीं नोंधनीय छे।
कृतिनी पहेली ढाळमां प्रारंभेली स्नात्र विशेनी तैयारीओनी वात त्यार पछीनी बीजी ढाळना पूर्वार्धमां आगळ वधारतां कविए त्यां स्नात्र माटे तैयार कराता कळशोनी, स्नात्रीओ वडे कराता कंकण-तिलकादिनी, सोनावाणीना छंटकावनी तथा स्नात्रीओना पच्चक्खाणनी वातो संक्षेपमां आलेखी, ढाळना उत्तरार्धमां कया कया गामना श्रावको ते प्रसंगे पधार्या तेनी विगतो नोंधी छे। विशेषे आ विगतोमां नोंधायेला पिंडभेरेवाला, गोंदलावाला, खूपरवाला तथा जामकीवाला ए ४ गामो सिवायना शेष गामो थोडा नाम फेरफार साथे आजे पण विद्यमान छे।
त्यार पछीनी कृतिनी त्रीजी ढाळनां ३ पद्योमां कविए प्रतिष्ठा अवसरे गाममां घर दीठ अपाती लाहणीनी तथा ग्रामजनोना उत्साहनी वातो दर्शावी अंत्य २ पद्योमां प्रतिष्ठा अवसरे छठ्ठे दिवसे कराता बलि-बाकुलाना विधाननी तथा नव ग्रह-दश दिक्पालादिना पूजननी विधि गूंथी छे। जेमां पण पूजनविधिना अवसरे जिनालयमां पद्मावतीनी मूर्त्ति स्थापित करायानी विगत विशेषे ध्यानार्ह छे।
वर्णनाक्रमनी हवेनी २ ढाळो जळयात्राना वरघोडानी वर्णना आलेखे छे, जेमां कवि वडे प्रभुने पधराववानी पालखी केवी बनावाई?, तेमां केटला प्रतिमाजी पधरावाया?, ते क्यांथी लेवामां आव्या?, पालखीने कई रीते जलयात्रामां लई जवाई?, नगरनी बहारना बगीचामां जई कई रीते जल ग्रहण करायुं? तेनी विगतो सविस्तार आलेखाय छे। खास अहीं जोवा मळतो रथयात्रानो क्रम वर्तमानमां निकळती रथयात्रामां ते ज रीते दृष्टिगोचर थाय छे, पद्य १९मां उल्लेखित ‘उभय मंदर मझार’ ए पद, पद्य ३८मां उल्लेखित ‘पहिले मंदर मझार’ ए पद तेमज ५३मां उल्लेखित ‘आये पुराणे मंदार’ ए पद कुज्जरांवालाना पूर्वचैत्य तरफ तथा नवा जिनालयनी प्रतिष्ठा तरफ आपणुं ध्यान दोरे छे।
आम जलयात्रानी वर्णना पछीनी कृतिनी छट्ठी ढाळ प्रभुना नवा मंदिरना प्रवेशोत्सवनी वर्णना लईने आवे छे। प्रभुनो प्रवेश कई रीते करायो?, त्यारे कई कई वस्तु भेटणामां अपाई? प्रभुनो प्रवेश थई गया बाद शेनी प्रभावना कराई?, ते अवसरे स्वामिवात्सल्य कई रीते करायुं?, तेमां कई कई वानगीओ पिरसाई? इत्यादि वर्णनो कवि अहीं सुंदर रीते आलेखे छे। तेमां पण प्रभुना प्रवेशमां करायेल स्नात्र, अष्टप्रकारी पूजा, नव ग्रह, दश दिक्पाल पूजनादि विधानो तथा जमणवारनी वर्णनागत खस्ता, अंदरसा, सुंहाळी जेवां वानगीओनां नामो आजे पण पकवान तरीके प्रसिद्ध छे।
प्रभुजीनो प्रवेश थई गया पछी जिनालयमां ध्वजदंड कळशनी स्थापनानुं विधान करायानी विगतो कृतिनी सातमी ढाळमां छे। कृतिकारे नोंध्या मुजब ते विधान माटे सौप्रथम जिनालयमां वेदिका बनावाई, त्यां पूर्वे लवायेल जलकळशो वडे ध्वजदंड-कळशनो अभिषेक करायो, ते पूर्ण थतां तेने मींढोळ बांधी आरती करी सोमपुरा पासे तेनी स्थापना करावाई। जेठ वद २ना दिवसे प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्ण थतां आशातनाना निवारण माटे स्नात्रीओ सहित श्रीसंघ वडे आयंबिल तप करायो तथा विविध वर्णना चोखाथी सिद्धचक्र यंत्र बनावी नवपदनी पूजा भणावाई। आम प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्ण थतां पाछा फरता लखमीचंदनी, तेमना वडे अपायेल शीखनी वात आ ज ढाळना वच्चेना ४ पद्योमां आलेखी, शेष पद्योमां कृतिकारे प्रस्तुत स्तवना कई रीते रचाई? आ प्रतिष्ठानुं फळ शुं? तेनी वातो संक्षेपमां दर्शावी छे। खास आ विगतमां उल्लेखित भावविजयजी ते कोण छे तेनी कृतिकारे काव्यमां कशी स्पष्टता करी नथी। जोके कृतिनी ८मी ढाळमांनो पूज्यश्रीना परिवारना मुनिओना नामोनो संदर्भ जोतां उपरोक्त भावविजयजी ते पूज्यश्रीना छट्ठा शिष्य होवा जोईए।
कृतिनी छेल्ली २ ढाळो प्रतिष्ठावर्णनस्तवननी प्रशस्तिनी ढाळो छे। जेमांनी आठमी ढाळमां बूटेरायजीना शिष्यादि परिवारनी विगतो वर्णवी कृतिकारे स्वनामनो उल्लेख कर्यो छे, तो नवमी ढाळमां बूटेरायजीना गुणवैभवनी स्तवना आलेखी कृति रचनासंवतने दर्शावतां कृतिनुं समापन कर्युं छे। खास आ बन्ने ढाळोमां जोवा मळती बूटेरायजीना गुणोनी वातो कृतिकारना तेमना प्रत्येना अहोभावने दर्शावे छे।
कृतिकार परिचय
कृतिनी ८मी ढाळ कर्ताना उल्लेखवाळी ढाळ छे। कृतिकारे अहीं पोतानो ‘लधु इसर’ ए रीते नाम निर्देश कर्यो छे। जोके तेमनो विशेष परिचय क्यांय मळतो न होवाथी तेमना विशे कशुं लखी शकाय तेम नथी।
प्रत परिचय
प्रस्तुत कृतिनुं संपादन अमे कोबानी २ हस्तप्रतोने आधारे कर्युं छे। जोके तेमांनी ११४९९४ नंबरनी प्रत अपूर्ण होवाथी ११८५०९ नंबरनी प्रतने अमे आदर्श तरीके वापरी छे। लेखननी दृष्टिए आदर्श प्रत शुद्ध तथा सुवाच्य छे। हां, तेमांना केटलाक पाठो अमने पण समजाया न होई तेवा पाठोने अमे त्यां ज प्रश्नार्थ करी दर्शाव्या छे। खास विद्वानोने ते अंगे अमारुं ध्यान दोरवा नम्र विनंति।
।। श्री जिनाय नमः ।। कुज्जरांवालेके मंदरकी प्रतिष्ठाका स्तवण ।।
दोहरा- सासननायक बंदीये१, बर्धमान अरिहंत ।
इंद्रादिक मिल पूजते, महिमा जास अनंत ।।१।।
मेरो धर्माचार्यजी२, बुद्धिविजय मुनिराय ।
पूनमचंद गुरु भावजी, मानकचंद सुखदाय ।।२।।
तिणके चरण-कमलहमें, भेटत३ अंग नवाय४ ।
परतिष्ठा५ अधिकार यह, कहों कछू मण-लाय ।।३।।
देस पंजाब विषे भलो, सुंदर कुज्जरांवाल ।
तिहां जिनमंदर दीपतो, पूजें बहु उसवाल ।।४।।
समत उन्नीसय-बीस(१९२०)कों, मंदर हुयो तियार६ ।
तिणकी परतिष्ठा करो, मोहणलाल कहे सार ।।५।।
[।।ढाल-१ ।।] चौपाईनी ।।
विद्याधर पंडित सदवायो७, तपसी मोहणलाल मन भायो ।
काड८ महूरत मंदरजीका, मास वैसाख बन्यो९ अति नीका ।।६।।
सुदि त्रयौदशी भली बखानो, प्रथम पहरके बीच प्रमानो१० ।
एही महूरत सब मन लीना, पंडितजीको विद्या११ कीना ।।७।।
लखमीचंद सेठ फिर आयो, प्रतिमा एक लहौरों१२ ल्यायो ।
विसहर-लंछन पग पर जानो, ताते१३ पार्श्व नाम वखानो ।।८।।
जिनके दरशन संकट नाशे, पूजत मिथ्या तिमर विनासे ।
समकित-सहित व्रत जो पाले, ताते मारग मोख संभाले ।।९।।
परतिष्ठा कीयां१४ वस्तु जोई, कागत१५ एक लखावो सोई ।
अब सब वस्तु इकट्ठी कीनी, लखमीचंद सेठकों दीनी ।।१०।।
सोरठा-तपसी मोहणलाल, श्रावक सबी बुलायके ।
अब मुझ बात संभाल१६, लिखो पत्रिका सभ१७ जगें ।।११।।
सुणके श्रावक बात, खुशी होये सभ अंगमें ।
ल्याये कलम दवात१८, सब चिट्ठी लिख मांडीयो१९ ।।१२।।
आयो मास वैसाख, दिन दिन खुशी वधे घणी ।
चडियो शुकला पाख२०, चार स्नात्री थापीयो ।।१३।।
प्रम(थ)मे मथरादास, ईसर वड्डा दूसरो ।
लघु ईसर इम भास, चौथो नाम गुलाब हे ।।१४।।
जंडिआलेथी आय, पूज२१ एक रामा रिषी ।
तिण सभ विधि कराय, ग्रंथ सोध२२ मंतर पडे ।।१५।।
[॥ढाल-२॥] मणमोहण जिनजी तुझ बयने२३ मुझ रंग०-ए देसी ।।
सुखदाई तोरी सेवा करो नित मेव (आंकणी)
वैसाख सुदि तृतीयाथी मांडी, दस दिन पूजा उदार ।
चांदी कलसे चार भरीनें, पंचामृत२४ विधनाल२५ ।।१६।। सुखदाई…
सर्व सनात्री२६ कंकण२७ बांदी२८, तिलक लगायो भाल ।
ऊभा थई सनात करावें, पूजें दीन-दियाल ।।१७।। सुखदाई…
साती समरण२९ नित उचारे, प्रात मध्य निस-काल ।
तपसीजीको साथ लेईने, धूप दीप विधनाल ।।१८।। सुखदाई…
सोनावाणी३० तिहां छटकावी, उभय मंदर३१ मझार ।
सभ नारी मिल मंगल गावे, बोलें जय जयकार ।।१९।। सुखदाई…
सर्व सनात्री भोजन करते, दिनमांहि इकवार ।
भूम-सयण सिज्झा३२ नही सोवें, करे सु(स)चित परिहार३३ ।।२०।। सुखदाई…
अब सब संघ इकठा होया, कुण कुण शहरथी आय ।
तिणके नाम कहुं मैं विधसुं, सुणजो चतुर मन लाय ।।२१।। सुखदाई…
रामनगर पिंडभेरेवाले, पपनाखेथी आये ।
किलेदिदारसिंघके श्रावक, आये ते मुझ मन भाये ।।२२।। सुखदाई…
गोंदलावाला खूपरसाला, जंबू शहरसें 1धाये३४ ।
नगर मजीठा दसका दीठा, जामकीवाले हुमाये३५ ।।२३।। सुखदाई…
अमृतसर कालेबागाथी, सणखतरेवाले भाये ।
सोबासिंघदे किलेथी आये, भिन भिन ठाम दवाये ।।२४।। सुखदाई…
रामा रिख जंडियालेवाला, रामकरण इहां थाये ।
गुरदित्ता रिख हीरा रिखजी, धन्नू अनंता सुहाये ।।२५।। सुखदाई…
।।ढाल-३।। प्रभू पासना मुखडा जोवा, भव भवना पातक खोवा०-ए देसी ।।
जिनसासन सोभा कीजे, नरभवनो लाहो लीजे (आंकणी)
ब्राह्मण शहर विषे जो वस्ती, ठाकरद्वारा जोगी अस्ती३६ ।
दो दो मठी३७ नाल कडाई, पैसे चार चार बुतशाई३८ ।।२६।। जिन…
सबकों घर घर परती३९ दौना, जैनधरमका तौ जस लीना ।
रनीया जीवनसिंघ जो आवे, छयणे४० ढोलक खूप वजावे ।।२७।। जिन…
संध्यासमय सबी मिल आवें, पडे४१ वधाईयां छंद सुनावें ।
डिंगा भगत तवे सदवायो, नाचें गावें बहुत हुमायो ।।२८।। जिन…
षष्ट दिवस बल-बाकुल४२ दीना, देव देवी तिणको सद-लीना४३ ।
नव ग्रह दस दिगपाल 2बोलाये, पदमावतीकी मूरति बनाये ।।२९।। जिन…
तव जिनमंदिरको पधरायो, सभ नारी मिल मंगल गायो ।
गुहली४४ रुकमण आप करावे, तव श्रावक जयकार 3बोलावे ।।३०।। जिन…
।।ढाल-४।।तुझ आणा मुझ मण वसी०-ए देसी।।
तुझ सेवा मुझ मन वसी, जिहां परतिष्टा अधिकार लाल रे ।
द्वादसमी तिथि आवीयो, रचे पालकी४५ सार लाल रे ।।३१।। तुझ…
थंभ छय४६ दर४७ पांचकी, ऊची गज४८ दोय मान लाल रे ।
पट्ट४९ जरी-गोटेतणी, मानो सुखकी खान लाल रे ।।३२।। तुझ…
उपर चंदोआ५० तानीओ५१, अतलसका५२ जानो एम लाल रे ।
बीजा चंद्रोया गोटे जरी, कंचण छबे५३ विच सेम५४ लाल रे ।।३३।। तुझ…
झालर५५ चहुं दिस घूमती, दावणी५६ अटिके५७ तीन लाल रे ।
तीन दरे विच बांदीया, जिगा५८ जडत नगीन५९ लाल रे ।।३४।। तुझ…
पालकी एह कैसी बणी, मानो स्वर्गविमान लाल रे ।
जलयात्राके कारणे, सिंहासण ठव्यो आन लाल रे ।।३५।। तुझ…
सकल श्रावक अरु श्राविका, करे सनान होवे शुद्ध लाल रे ।
वस्त्राभरण अंगे करी, करें 4कर्मसों युद्ध लाल रे ।।३६।। तुझ…
चारे स्नात्री सोभते, मोहणलाल लखमीचंद लाल रे ।
जिनभगति करतां थकां, काटे भवना फंद६० लाल रे ।।३७।। तुझ…
सभ नर नारी आवीयो, पहिले मंदर मझार लाल रे ।
स्वय-मति६१ पर-मति बहु जनें, बोलें जस विस्तार लाल रे ।।३८।। तुझ…
पालकीमांहि पधारीयो६२, प्रतिमा पांच विशाल लाल रे ।
अष्ट-मंगल आगे धर्यो, चामर छत्र रसाल६३ लाल रे ।।३९।। तुझ…
पांचवरणकी ध्वजा करी, नाम महेंदर जान लाल रे ।
नगर महोछवको चले, पूरव दिस परवान६४ लाल रे ।।४०।। तुझ…
ढोल नगारे वाजते, तूती६५ अरु मरदंग६६ लाल रे ।
सबतें आगे एह चलें, इण पीछे ध्वजा पंच-रंग लाल रे ।।४१।। तुझ…
इण पीछे श्रावक चलें, छयणेआको नही पार लाल रे ।
संख ढोलकी बाजती, घंटे नाद उचार६७ लाल रे ।।४२।। तुझ…
मध्य भाग प्रभू पालखी, आगे सनात्री चार लाल रे ।
लखमीचंद मोहणलालजी, गिणतीको नही पार लाल रे ।।४३।। तुझ…
कोई हसे कोई टापते६८, कोई बोले जयकार लाल रे ।
कोई गावें ऊभे कोई, सफल करे अवतार लाल रे ।।४४।। तुझ…
5सभते पीछे श्राविका, गावें मंगल चार लाल रे ।
एह विध जो भगती करें, पावे भवनो पार लाल रे ।।४५।। तुझ…
।। ढाल-५।। पंचमी तप तुम करो रे प्राणी, निर्मल पावो ज्ञान रे०-ए देसी।।
जल-यात्रा जिम कीनी विधसों, सुणो भविक धर कान रे [आंकणी]
नगर-महोछव कीना विधसों, आपे द्रवज्जे६९ कान७० रे ।
ब्रह्म-खाडे विच आण पधारे, तंबू कनातां७१ तान रे ।।४६।। जल…
चौकी सिंहासण पट पाटला, तखत-पोश७२ तिहां आन रे ।
थाल रकेबी७३ चंगेर७४ दानधर७५, रचें सनात-विधान रे ।।४७।। जल…
रिषभदेव प्रभू आन पधारे, सिंहासण मझार रे ।
तिण आगे बहु विधसों करते, पूजा सनात्री चार रे ।।४८।। जल…
जल चंदनादिक पुष्प धूप अर(रु?), दीप अक्षत नैवेध रे ।
फल-पूजा जिनराजके आगे, कीनी एह अष्ट भेद रे ।।४९।। जल..
नव ग्रह दस दिगपाल पूजीनें, कीनी आरती सार रे ।
नव-ग्रह पूजाकी जो वस्तू, दीनी ठाकरद्वार रे ।।५०।। जल…
लखमीचंद ते रामा रिखजी, नाल सनात्री चार रे ।
मोहणलालजीको साथ लेईनें, आये बगीची मझार रे ।।५१।। जल…
आठ दिसासें जल भर लीना, कलसे सात भंगार७६ रे ।
एक कलस विच चांदीका भरके, आये बगीची बार७७ रे ।।५२।। जल…
चांदी कलस इक रुकमण लीनो, और ग्रह्यो अन्य नार रे ।
एह विध जल-यात्रा करीने, आये पुराणे मंदार रे ।।५३।। जल…
सांझ समे मिल आरती करते, श्रावक सबी सुजान रे ।
हरखे गावें बोध जगावें, नासे तिमर अज्ञान रे ।।५४।। जल…
रात बीत जब त्रयोदशी आई, चडियो भानू प्रकास रे ।
तब सभ संघ इकट्ठा होके, लीनो जिनेसर पास रे ।।५५।। जल…
।।ढाल- ६।। क्यौं जानो क्यो वणी आवई, अभिनंदन रस-रीत हो मीत०- ए देसी॥
भाव धरीने जिन भेटीये, तोडे भव-दुख-फंद हो मीत ।
थालके मध्य पधारीयो, प्रतिमा पास जिणंद हो मीत ।।५६।। भाव…
थाल राम रिखने ग्रह्यो, दोनो हाथ मझार हो मीत ।
मंत्र पडीनें तिहां उतरीयो, आये बीच बजार हो मीत ।।५७।। भाव…
धीमे धीमे आवते, श्रावक बहुति सनाल हो मीत ।
प्रभूजीकों पधरावीयो, ठव्यो खेत्रपाल हो मीत ।।५८।। भाव…
प्रतिमा सब जेती७८ उहां, पालकीमांहे पधार७९ हो मीत ।
6पूर्ब रीतसें आवतें, बोलें जय-जयकार हो मीत ।।५९।। भाव…
गाते वजाते आवीयो, मंदरजीके पास हो मीत ।
सर्व ही चैत्य पधारीयो, अब हम पूरी आस हो मीत ।।६०।। भाव…
भेटना विविध प्रकारनी, रूपईए नलयेर८० हो मीत ।
मोरदवानी८१ पावली८२, मंत्र पडे सभ फेर हो मीत ।।६१।। भाव…
तव परसाद वंडावीयो८३, बूंदीलड्डू सार हो मीत ।
सभ नर नारी बालको, इक इक दीयो मन धार हो मीत ।।६२।। भाव…
और विधी तो घणी करी, सो तो कही नही जाय हो मीत ।
करति या(?) मालुम होवती८४, करो भविक चित लाय हो मीत ।।६३।। भाव…
पूनम तिथ जब आवीयो, कीनी जेवणवार८५ हो मीत ।
साहमी-वच्छल परभावना, श्रावक एही आचार हो मीत ।।६४।। भाव…
सब श्रावकको सधावीयो८६, आपे आलस टाल हो मीत ।
मुज(झ?) जिनधर्म प्रगट थयो, धन धन मोहणलाल हो मीत ।।६५।। भाव…
तब सब लोक बठायके८७, दीये हाथ धुहाय८८ हो मीत ।
थालीयां कौल८९ दीये तवे९०, नाल कटोरे सुहाय हो मीत ।।६६।। भाव…
अब मठे९१ आई परोसियो९२, बूंदी शक्करपार हो मीत ।
सूत९३ घणे खस्ता९४ बणे, नाल पाणी ठंडा ठार हो मीत ।।६७।। भाव…
गुप्यां९५ चुप्यां९६ बूंदीलड्डू, चूरालड्डू९७ दीये सार हो मीत ।
अंदरसे९८ सुहालीयां९९, पूछे बारोबार हो मीत ।।६८।। भाव…
मट्ठा१०० घणी विधसों दीयो, ताहरी१०१ बहुत सवाद हो मीत ।
गरी-बदाम मेवे करी, लूण मरचां घृत आद हो मीत ।।६९।। भाव…
इण विध श्रावक जेमके, दीनी चुलीकी१०२ घोष हो मीत ।
तब सब बाई बुलायके, पूरव रीते पोष हो मीत ।।७०।। भाव…
दोहरा-जेवणवार कर्या पछे, कीनो एक विचार ।
जे-कर कलसा अब चडे, तौ देखे नर नार ।।७१।। भाव…
जेठ वदी तिथ दूजका१०३, महूरत कीयो तियार ।
बेदी१०४ एक बनायके, लाई विच दलाण१०५ ।।७२।। भाव…
कलसा तबी नकालके१०६, थाप्यो वेदी पास ।
अब इणकी पूजा करो, मोहणलाल इम भास१०७ ।।७३।।भाव…
धजा-डंड मगवायके, वेदी हेठ पधार ।
उदक१०८ भरीने तिहां खडे, जो सनात्री चार ।।७४।। भाव…
प्रथमे दोय सनातरी, कलसा डंड नव्हाय१०९ ।
दो मिल चंदन घोटियो, लेप सुगंध लगाय ।।७५।। भाव…
म्रोडफली११० ते मयनफल१११, मौलीमांहे११२ परोय ।
रामा रिख पोथी लई, मंत्र पढावे सोय ।।७६।। भाव…
तव सब विधि करायके, करी आरती सोय ।
तव नाई११३ वेलां लए, इक इक पैसा जोय ।।७७।। भाव…
तव तरखान११४ बुलायके, देई पुशाक११५ भराय ।
धौंसा११६ शुतरी११७ वाजती, लीनो कलस झ(ज)डाय११८ ।।७८।। भाव…
सब तरखान मजूरकों, सधवायो११९ ततकाल ।
सिरोपाय१२० तिणकों दीयो, पग रुपईयां नाल ।।७९।। भाव…
जो सब देवी देव है, नव ग्रह दस दिगपाल ।
तिणकों विद्याकरणके१२१, मंत्र पडे विधनाल ।।८०।। भाव…
।। ढाल-७ ।। चोपाइनी ॥
दस दिन प्रभूकी भगती जागी, जो कोई तिहां आसातन लागी ।
तिण कारण हम प्राछित१२२ लीना, दस दस आंबल चारो कीना ।।८१।।
और घणे श्रावक जो आयो, इक इक आंबल सवी करायो ।
तत पीछे सिद्धचक्र उदार, अष्ट पंखडी कवल१२३-अ(आ)कार ।।८२।।
पंचवरणके चावल-तनो१२४, रचें श्रावक मन आनंद घणो ।
नवपदकी थापन तिह करी, पूजा करे हरख मन धरी ।।८३।।
दस दिनकी महिमा सुण भाई, घर घर मंगलचार१२५ वधाई ।
सरब संघकों विद्या कीना, जतिजन कों बहु आदर दीना ।।८४।।
श्रावक पूज सवी टुर जावें१२६, तब लखमीचंद बात सुनावें ।
हम तो अहमदावादको जाना, तपसीजीको संग निबाना१२७ ।।८५।।
तब हमको सिख्या१२८ कुछ दीजो, पूजा नित प्रभूकी कीजो ।
संध्यासमय आरती गानी, तेरस सुदि सनात करानी ।।८६।।
यक्का१२९ भाडे एक करायो, ब्राह्मण दिल्लीमें छड१३० आयो ।
अहमदावाद विषे जब जावें, सुख साताकी खबर पुचावें१३१ ।।८७।।
भावविजय मुणिराज सिधारे१३२, श्रावक लयन१३३ गये तव सारे ।
नमस्कार कीनी बहु विधसों, सुख-साता पूछी तव हितसों ।।८८।।
तव श्रावक जब नाल१३४ लियाए, फागुण सुदि त्रीज सुखदाये ।
तव जिनमंदर दरशन कीनो, कर प्रदक्षणा बहु जस लीनो ।।८९।।
हमको कह्यो वधाई गावो, परतिष्ठाका तवन बनावो ।
तिणकी आज्ञासे हम कीना, ढाल सोरठा बहु विध लीना ।।९०।।
तव एह तवण बन्यो छै नीका, नाम धर्यो जिनमंदिरजीका ।
भावविजय प्रभू तुमे चितारो१३५, वध घट अखर ते निरवारो१३६ ।।९१।।
एह विध जो परतिष्टा करसी, भवसागर ते सुलभ तरसी ।
जिनभगती नावा१३७ सम कहिये, विचमें बैंठ तीरथ-पद लहिए ।।९२।।
एह महिमा कीनी बहु विधसों, और न वरणी जाये हमसों ।
अब सतगुरुको करों प्रणाम, जिनकी किरपा१३८ वरन्यो आम ।।९३।।
।।ढाल- ८।।
गायो गायो रे [गायो गायो रे], प्रभू पास जिनेसर गायो ।
श्रीगुरु बूटेरायजी पसाये, एह अधिकार१३९ बनायो रे ।।९४।। प्रभू…
तास सीस मुणि मुक्तिविजयजी, वृद्धिचंद मुनिरायो ।
नितविजय मुणि दयाचंदजी, पूणमचंदजी सुहायो रे ।।९५।। प्रभू…
षष्ट सीस लघु भावविजयजी, मानकचंद कहायो ।
हंस गुलाब झवेरसागरजी, एह परिवार बतायो रे ।।९६।। प्रभू…
मेरु धीरता सब हर लीनी, कुमतिकलंक मिटायो ।
पेरे पेरे१४० तेहना मर्म दिखावी, जिनमारग दरसायो रे ।।९७।। प्रभू…
सर्व संघके अग्रे(आग्र?)१४१ करीने, लघु ईसर गुण गायो ।
भाव ज्ञान जब जोत जगी तब, फिर संसार न आयो रे ।।९८।। प्रभू…
।।ढाल-९ ।।
बंदना बंदना बंदना रे, बूटेराजकों सदा मोरी बंदना रे (आंकणी)
प्रभु देस दक्षणतें आये, दोय चेले नाल लियाए ।
इक पूनमचंद मानकचंदना रे ।।९९।। बूटे…
प्रभू कुज्जरांवाल पधारे, तव सेवे श्रावक सारे ।
संमत उन्नीस माघं दना१४२ रे ।।१००।। बूटे…
प्रभू मिथ्या-मत निरवारी, सभ श्रावकने मन धारी ।
नही पडणा उणकी फंदना रे ।।१०१।। बूटे…
प्रभू सूतर१४३ सोध१४४ सुनावें, सत नय लख अरथ धरावें ।
सब कुमती-धर्म विहंडना१४५ रे १०२।। बूटे…
तिहां षट दरशनके आवें, प्रभू चरचासों चित लावें ।
नही करकस वचन बोलंदना१४६ रे ।।१०३।। बूटे…
जो सेवा तुमरी करसी, भवसागरथी सो तरसी ।
गति नरक नगोद निकंदना [रे] ।।१०४।। बूटे…
प्रभू हम पासे तुम आवो, मुझ ऐसा ज्ञान बतावो ।
जिम करम-कलंक पछंडना१४७ रे ।।१०५।। बूटे…
तिण कारण एह गुण गायो, मै बहु विध सीस नवायो ।
दीयो समकित-रतन आनंदना रे ।।१०६।। बूटे…
समत उन्नीस इकीसे(१९२१), चैत्र मास शुकल पख दीसे ।
वार शुक्र बीज चडियो चंदना१४८ रे ।।१०७।। बूटे…
कलस
इम त्रिजग-भासन१४९ अचल-आसन त्रेवीसमो जिनराज ए,
जो भाविक भावे सुनें गावे दुरमति तस भाजए ।
जिनगुण प्रसंगे भन्यो१५० रंगे परतिष्ठा अधिकार ए,
जो करे करावे अनुमोदे तस घर होये मंगल-माल ए ।।१०८।।
।। इति प्रतिष्ठा स्तवण संपूर्णम् ।।
पाठांतर
शब्दार्थ
१. वंदना करीए, २. गुरु, ३. भेटवुं, ४. नमावी, ५. प्रतिष्ठा, ६. तैयार, ७.बोलाव्यो, ८. काढी, ९. कह्यो(?), १०. नक्की कर्युं, ११. जाण(?), १२. नानी (?), १३. तेनाथी, १४. कई, १५. कागळ, १६. सांभळी, १७. सर्व, १८. (शाहीनो) खडियो, १९. शरू करी, २०. पक्ष, २१. श्रीपूज्य, २२. जोईने, २३. वचनमां, २४. घी, दूध, दहीं, खांड, मध ए पांच उत्तम द्रव्योथी बनतुं द्रव्य, २५. ?, २६. स्नात्र करनार, २७. मींढळ अने मरडासींगथी बनती रक्षापोटली (राखडी जेवुं), २८. बांधी, २९. स्मरण, ३०. स्वर्णथी मिश्रित मंत्रवाळुं पाणी, ३१. जिनालय, ३२. शैय्या, ३३.त्याग, ३४. चाल्या(?), ३५. उल्लासित थया, ३६. संन्यासी विशेष (?), ३७. वस्तुविशेष (?), ३८. वस्तु विशेष (?), ३९. प्रत्ये, ४०. ढोल वगाडनार, ४१. वांचे, ४२. प्रतिष्ठादि प्रसंगे करातुं एक विधान, ४३. साध्या(?), ४४. स्वागतादि माटे कराती घउं आदिनी आकृतिओ, ४५. पालखी, ४६. छ, ४७. दरवाजा(?), ४८. २ फूट, ४९. चित्रित वस्त्र(?), ५०. चंदरवा, ५१. बांध्या, ५२. एक जातनुं रेशमी कापड, ५३.? , ५४?. , ५५. गोळ घंट (वाद्य विशेष), ५६. ? , ५७. ? , ५८. जड्या छे., ५९.रत्नो, ६०. बंधन, ६१. स्वमतनी मान्यतावाळा, ६२. मूकी, ६३. आनंदपूर्वक, ६४. ?, ६५. ततूडी, एक जातनुं रणसिंगु, ६६. मृदंग, ६७. करीने(?), ६८. कूदे छे, ६९ ?, ७०?. , ७१. कापडनो पडदो, ७२. सिंहासन पर पाथरवानी चादर, ७३. थाळी, ७४. सुंदर, ७५. कुंडी, दान=मद, जेम हाथीना गंडस्थळमांथी मद झरे तेम अभिषेक करतां पाणीने धारण करवा माटेनुं पात्र(?), ७६. झाळीवाळो कळश, ७७. द्वारे, ७८. जेटली, ७९. मूकी, ८०. श्रीफळ, ८१. ?, ८२. चार आनी, ८३. वंदाव्यो(?), ८४. खबर पडे छे(?), ८५. जमणवार, ८६.बोलाव्या, ८७. बेसाडीने, ८८. धोवडावी, ८९. कचोला, ९०. ?, ९१. ?, ९२. पीरस्युं, ९३ ?, ९४ ?, ९५. खाद्य वस्तु विशेष (?), ९६. खाद्य वस्तु विशेष (?), ९७. चूरमानो लाडु, ९८. ? , ९९. पूरी जेवो एक खाद्य पदार्थ, १००. ?, १०१. ?, १०२. जम्या पछी हाथ धोवा भराती पाणीनी खोबली, १०३. बीजनो, १०४. वेदिका, १०५.? , १०६. काढीने, १०७. बोल्या(?), १०८. पाणी, १०९. पक्षाल करी, ११०. मरडासींग, १११. मींढोळ, ११२. नाडाछडी, ११३.? , ११४. शिल्पी, कडियो, ११५.वस्त्र, ११६. नगारा, ११७.शरणाइ(?), ११८. चणी दीधो(?), प्रतिष्ठा करी(?), ११९. बोलाव्या(?), १२०. ईनाम, १२१. पूजा-विधान माटेना, १२२. प्रायश्चित्त, १२३. कमल०, १२४. चोखानुं, १२५. शुभ आचरण, १२६. (?), १२७. साथ आपवो, १२८. जती वखते अपाती भेट, १२९. बळद के घोडाथी खेचातुं वाहन, १३०. मूकी(?), १३१. पुछावे, १३२. पधार्या, १३३. लेवा (गया), १३४. ?, १३५. जुवो, तपासो, १३६. दूर करो, १३७. नौका, १३८. कृपाथी, १३९. वृत्तांत (स्तवन), १४०. जुदी जुदी रीते, १४१. आग्रह, १४२. ?, १४३. सूत्र, १४४. शुद्धि पूर्वक(?), १४५. छोडी देवो, १४६. बोलवुं, १४७. पछाडवा, १४८. चंद्र, १४९. प्रकाशनार, १५०. कह्यो।
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