कृति परिचय-
पांच ढाल अने ६९ गाथामां रचायेलुं आ स्तवन खंभातमां आवेला सागोटा पाडाना चितारी बजारना श्री चिंतामणि पार्श्वनाथनी स्तवना रूपे छे।
स्तवनना आरंभे कर्ता भगवती मा भारती सरस्वतीने समरी श्री चिंतामणि पार्श्वनाथने स्तवीश एम कही श्री चिन्तामणि पार्श्व केवा छे तेनो महिमा वर्णवे छे। त्यार पछी ते श्री चिंतामणि पार्श्वनाथना प्रासादनुं वर्णन करी प्रथम ढाल पूर्ण करे छे। पछी बीजी ढालमां श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रासाद जेणे कराव्यो तेनी वात विस्तारथी मांडे छे। तेमां सौ प्रथम खंभात नगरनुं वर्णन करी ते नगरमां पूर्वे जे जे महापुरूषो थया तेमना नाम अने कार्यने स्मरे छे। त्यार पछी ते नगरमां आवी वसेला श्रेष्ठी पारेख वजिया-राजिया बे भाईनी वात करे छे। एकवार श्री विजयसेनसूरि गुरु पधार्या तेमनी देशना सांभळी बन्ने भाईओए जे जे पुण्यकरणी करी तेनुं सविस्तर वर्णन करी आखुं स्तवन पूर्ण करे छे। अंते कलशमां कर्ता पोताना गुरुनी परंपरा बतावी स्तवन पूर्ण करे छे। आ कृतिमां राजिया-वजियानां अन्य पण अनेक सुकृत्योनी नोंध कराई छे।
राजिया-वजिया विषे कंईक-
अकबरना समयमां मूल गंधारना वतनी श्रीमाली ज्ञातिना जसिया वणिकनी जसमादे स्त्रीना बंने पुत्र पारेख वजिया अने राजिया वेपार करवा खंभात आव्या। वेपारमां घणुं द्रव्य कमायां ते समये गोवामां फिरंगीओनुं राज्य हतुं। तेमना दरबारमां आ बन्ने भाईओए सारी प्रतिष्ठा मेळवी हती। खंभातनो इतिहास नोंधे छे के एक वखत चेउलना एक खोजगीने अने बीजा केटलाक माणसोने गोवाना फिरंगीओए केद कर्या हता। फिरंगी अधिकारीओए तेमने छोड्या नहि छेवटे ते खोजीने १लाख ल्याहरी दंड कर्यो पण दंड आपवानी तेनी शक्ति नहोती तेथी तेणे छेवटे परीख वजिया-राजियानुं नाम आप्युं त्यारे परीख राजियो फिरंगीना अधिपति वीजरेल पासे गयो अने एक लाख ल्याहरी भरीने खोजगी छोडाव्यो। खोजगी चेउल गयो अने पाछळथी शक्ति थता एक लाख ल्याहरी राजियाने भरी दीधी। एक वखत ए खोजगीए २२ चोरोने केद कर्या अने एक दिवस तलवार लईने मारवा तैयार थयो त्यारे चोरोए कह्युं के आप मोटापुरूष छो अमारा उपर दया करो। वळी आजे राजिया शेठनो मोटो तहेवारनो दिवस छे। (भादरवा सुद-२) राजिया शेठनुं नाम सांभळता ज चोरोने मारवानुं छोडी दई मुक्त कर्या अने कह्युं ए तो मारा मित्र छे एटलुं ज नहि मने जीवन देवावाळा छे। एमना नामथी हुं जेटलुं करुं एटलुं थोडुं छे। आ प्रसंग परीख राजिया अने वाजियानी राज दरबारमां केटली लागवग अने प्रतिष्ठा हती ते बतावे छे। आ स्तवनमां पण चोरने वधथी निवार्या व. नोंधेल छे। खंभातना इतिहासमां आ बन्ने भाईओनी जुगल जोडीए केवां केवां धार्मिक-सामाजिक सत्कार्यो कर्यां तेनी सविस्तर नोंध मळे छे।
सं.-१६४४मां जेठ सुद -१२ना श्री विजयसेनसूरिना हस्ते चिंतामणि पार्श्वनाथना जिनालयमां प्रतिष्ठा करावी। तेना ज भोंयरामां थंभण पार्श्वनाथ साथे महावीर स्वामी अने ऋषभदेवनी प्रतिमा पधरावी। पोताना घर देरासरमां शांतिनाथ पधराव्या। घोघा पासे बांदोडइमां करेडा पार्श्वनाथ अने नेमनाथना बे देरासर कराव्यां। (खंभातनो इतिहास नोंधे छे के वडोदरमां बे देरासर करावी करेडा पार्श्वनाथ अने नेमनाथ पधराव्या।) गंधारमां एक देरासर करावी नवपल्लव पार्श्वनाथ पधराव्या अने खंभातथी बे माईल दूर आवेला नेजा गाममां देरासर बनावी मरुदेवी सुत ऋषभदेव पधाराव्या। अहीं स्वर्ग भुवन सरखा सात देरां बनाव्यां एम लखेल छे। अन्यत्र ५ देरां बनाव्या एम मले छे। साथे भोंयरानां देरासर अने घर देरासरने वजियाना पुत्र मेघजीए सं. १६५८मां बनाव्यानो उल्लेख छे।
वजिया राजियाए संघवी थई आबुजी-राणपुर अने गोडी पार्श्वनाथनी यात्रा माटे मोटा संघो काढ्या हता। घणा जिर्णोद्धार कराव्या हता। सातेक्षेत्रने पोष्यां हतां। गामे गाम उपाश्रयमां चंद्रुवा आप्या हता जेनी संख्या पार न पमाय तेटलां उत्तम कार्य तेमणे कर्या हता। श्री विजयतिलकसूरिनो दीक्षा-उत्सव पण कर्यो हतो एम उल्लेख अहीं स्तवनमां मळे छे।
घोघला गाममां (दीव पासे) कोई माणस जीवहिंसा करे नहि एवो हुकम मेळव्यो हतो तथा सं. १६६१मां भयंकर दुकाळ पड्यो त्यारे चार हजार मण अनाज आपीने घणा कुटुंबनी रक्षा करी हती। साथे गामेंगाम पोताना माणसोने मोकलीने रोकडी रकम आपीने सहुने सहायता करी हती। एकंदरे तेमणे ३३लाख रूपिया पुण्य कार्यमां खर्च्या हता एम इतिहास नोंधे छे। (राजिया-वजिया बाबते विशेष जाणकारी माटे पुस्तक “सूरीश्वर और सम्राट” पृ. २५०, आणंदजी कल्याणजी पेढी द्वारा प्रकाशित “जैन तीर्थ सर्वसंग्रह भाग १”, पू. आ. श्री पूर्णचंद्रसूरि लिखित पुस्तक “जैन शासनना ज्योतिर्धरो भा. १”, अनुसंधान ७६मां पू. गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी द्वारा प्रकाशित लेख “स्तम्भतीर्थसत्क राजीआ-वाजीआ श्रावकनां सुकृतोनुं वर्णन करती भाषा-रचना (अपूर्ण)” उन्हीं के द्वारा प्रकाशित पुस्तक “प्राचीन जैन लेखसंग्रह” आदि जोई शकाय।)
कर्ता परिचय-
श्री हीरविजयसूरिना पट्टधर विजयसेनसूरि (तेमनुं संसारी नाम जेसिंघ हतुं, जेनो उल्लेख कृतिकारे कर्यो जणाय छे) तेमना शिष्य (के जेओ मूळ विसलनगरना देवजी शाह बे पुत्रो अने पत्नी साथे खंभात वंदनार्थे आव्या ने आचार्यश्रीना उपदेशथी वैराग्य पामी चारेए दीक्षा लीधी अने १६७३मां गच्छनायक पदे आव्या ते) तिलकसूरिनी पाटे विजय आणंदसूरि थया। तेमना गच्छने शोभवनारा श्री कीर्तिविजय उपाध्याय थया अने तेमना चरणनी सेवा करनारे आ स्तवननी रचना करी छे। कर्ताए पोतानुं नाम ‘‘तस चरण पंकज सदा सेवक‘ तरीके ज नोंध्युं छे। कर्ताना अने रचनाना समयनी नोंध कृतिमां मळती नथी पण आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबानी सूचीमां कर्ताना दादागुरु विजय आणंदसूरिनो समय वि.सं. १७१० नोंधायेल छे। आना आधारे समयनुं अनुमान लगावी शकाय छे।
प्रत परिचय
श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामां क्रमांक-२२५७० पर नोंधायेल प्रतमां पत्र-५७/आ थी ६४/अ सुधीमां आ स्तवन लखेल छे। १४ पेज, १ पत्रमां ९ लीटी, १ लीटीमां २५ थी २८ अक्षर मोटा अने सुघड छे। अनुमाने प्रतनो समय वि.१९वी सदी जणाय छे।
नोंध- ह्रस्व दीर्घनी एकरूपता नथी। चिंतामणी अने चिंतामणि एम छे जे अमे ‘चिंतामणि’ एक ज स्वीकारी लखेल छे। बे स्थाने लहियानी भूलथी थयेला अनुस्वार सुधार्या छे। गाथा ६-निंरमलनुं निरमल अने गाथा ३७-मां अष्टांपद नुं अष्टापद करेल छे। आंकणी पद क्यांक गाथा क्रमांक पूर्वे तो क्यांक पछी छे जेने अमे बधे एकरूपता माटे गाथा क्रमांक पछी लखेल छे। गाथा नं. २३ नुं १ चरण लहियानी भूलथी रही गयुं छे जे बीजी प्रतना अभावे अमे आम ज राखेल छे।
श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबाना व्यवस्थापकोनो आ प्रतनी नकल आपवा बदल आभार. विद्वानोने विनंति के क्षतिने संमार्जीने जणावे ।
।। श्री गुरुभ्यो नमः ।।
॥ चोपई ॥
प्रथम नमुं भगवती भारती, तुठी आपे वर भारती ।
सेवक सेवा संभारती, दुख दालिद्र दूरें भारती ।।१।।
थूणस्यूं श्री चिंतामणि पास, समरथ सांमी लील विलास ।
सेव्यो पूरइ सेवक आस, लखिमी लख लीला आवास ।।२।।
प्रभूनि मूरति सोहामणी, तेजिं जीत्या धन दिनमणी ।
वंछित पूरण चिंतामणि, जिम सुरतरू घट चिंतामणि ।।३।।
चिंतामणि नें चरणे मुदा, नमतां लहीइं सुख संपदा ।
चिंतामणि सेवा नर म(मु)दा१, मुझ मन कुंजर नें नरमदा२ ।।४।।
त्रंबावती३ तरुणी श्रृंगार, सोहग लावण्य रस भृंगार ।
अहनिसि करें भुवन उपगार, सेवक राखें जिम पागार४ ।।५।।
।। ढाल [१] ।।
राग – केदारो
॥ वेरागी लाल लाल हो- ए देशी ॥
आशापूरण अभिनवो, कल्पद्रुम अंकुर ।
दिणयर ससीहर कोडिथी, निंरमल प्रभु मुख नूर ।।६।।
जिणेसर तारि तारि हो, आवागमन५ निवारि । जिणे०
त्रेवीसमो त्रिभुवन धणी, भवजल तरण तरंड६ ।
मोह मयण बल मोडण, गुणमणि निकर करंड७ ।।७।। जि०
फूलित फणिफण८ मंडपे, ओपिं रयणनी ओलि ।
तोरणिआरी९ सात पइ, मानुं पय१० मुगती पोलि ।।८।। जि०
करजोडी सेवा करइ, सुरनरपतिनी कोडि ।
आवे सुर सुरलोकथी, करता दोडादोडी ।।९।। जि०
कासी देस मनोहरू, वाणारसी सर हंस ।
अश्वसेन नरपति तणो, कुलभूषण अवतंस ।।१०।। जि०
वामाकुखिं ऊपनो, नव कर११ नील शरीर ।
नाग लंछन नरकेसरी, निरमल गंगानीर ।।११। जि०
प्रभूप्रासाद मनोहरू, तुंग शिखर धजदंड ।
भाग सखर१२ सोंना समो, कोरणी कमल अखंड ।।१२।। जि०
जोति१३ सबल जाली तणी, चोक चतुर चीत्राम ।
गौख चंदरूआ नवलखा, एतो इंद्रभुवन अभिराम ।।१३।। जि०
नाटिक करती पूतली, धरती नव नव वेष ।
मानुं ए आवी अपछरा, थगित१४ थई प्रभू देखि ।।१४।। जि०
।। ढाल [२] चंद्रायणानी ।।
।। राग-केदारो – गी(गो)डी ।।
इणि परि पुण्य करो भवि प्राणी, जिम पांमें सिवपुर गुणखांणी ।
ए जगमां मोटुं शुभ काज, जिनमंदिर आपइ शिवराज ।।१५।।
प्रभू प्रासाद कराव्यो जेणिं, जगि सबलो यस राख्यों तेणिं ।
तेह तणो सूणयो अवदात, चोपट१५ चिहुंदिसिमांहि विख्यात ।।१६।।
सायर तीर वसें अभिराम, खंभनयर उत्तम ठाम ।
चिहुंदिसि वन-वाडि-आराम, शीतल छाया जन विसराम ।।१७।।
उंचो कोट अनोपम खाई, कोसीसांनी१६ सबल सजाई ।
मानुं सेस१७ सहस फणि छाई, नयर निधान रहयौ वीटाई ।।१८।।
दरवाजाना सबल दिवाजा, मुंगत्तिपोलीउं तोरण ताजा ।
माणिकचोक सबल चतुराई, दोइ पासि चहुटइं दु(द)रसाई ।।१९।।
वस्तु वखारें अनेक भराइ, वडसफरी प्रवहण पूराइ ।
पोढा विण[ज] करें व्यापारी, लख्यबध लखपति विवहारी ।।२०।।
चोहोटामांहिं रयणनी हारयो१८, ते देखी रयणायर हारयौ१९ ।
मानुं दिन प्रतें दोइ दोइ वारो, आवी चरणें करें जूहारो ।।२१।।
चतुर लोक मलपंती चालइं, मांगण दान अवारित(अविरत)२० आलइं ।
रामा रंभ जिसी रूपाली, रवि थंभइ जस रूप निहाली ।।२२।।
जिणहर तुंग शिखर धजच्छाया,……………………………… ।[1]*
स्वर्गलोकना सूणीय प्रसीद्ध, जोवा आव्यां पुरनी ऋद्धि(द्ध) ।।२३।।
कइडिं२१ खलके बहुली कुची, घर मोटा नें मेडी उंची ।
गोखिं जालीनी भांति, एहवुं नयर वसे रे खंभाति ।।२४।।
जिहां वसे संघवी उदइंकरण, त्रंबावती केरूं आभरण ।
जगमां जास नहीं कोइ जोडी, जिणि खरची धर्मे धन कोडि ।।२५।।
वलि वसे सोनी तेजपाल, अहनिसि धर्म तणो जस ढाल ।
सेत्रुजें कीधो उधार, भरत परें जगि जस विस्तार ।।२६।।
जिहां दोइ वजीआ राजिआ भाई, जेणिं श्रीमालि नाति सोहाई ।
पारिख जसीआ कुल श्रृंगार, जसमादे जनम्या जयकार ।।२७।।
देश देश तस बहु व्यापार, बंदीर बंदीर सबल वखारि(र) ।
जेहना द्रव्य तणो नहिं पार, रयणायर जिम रयण भंडार ।।२८।।
जे जगमांहिं जाति धूतारी२२, तेह नमइं टोपी ऊतारी ।
अकबरसाह दीइं बहुमांन, मूंकइं दाण लिखी फुरमान ।।२९।।
गोहामाहिं२३ जस छाजइ छत्र, धरम धुरंधर पुण्य पवित्र ।
राणा राय हमीर२४ फरंगी२५, वयण न लोपें कोइ अभंगी ।।३०।।
[ढाल-३]
॥ राग-गोडी ॥
॥ भावी पटोधर वीरनो – ए देशी ॥
तिणि नयरी गुरू आवीआ, श्री विजयसेनसूरीस ।
जगगुरुना आदेशथी, संघ मिनि अति सबल जगीस ।।३१।।
पुण्य करो जगजीवडा, पुण्यें जग जसवाद ।
पुण्यें शिवपद पामीइं, पुन्यें भोग सवाद ।।३२।।
गोखि बइसी दीइं देसना, पुण्ये सुख भरपूर ।
तन धन यौवन कारिमुं, जिम वाहोलीया२६ पूर ।।३३।। पु०
मही मंडन जिम मानवी, मुख मंडण जिम नेत्र ।
दांन मंडण जिम धन तणुं, दान मंडन शुभ क्षेत्र ।।३४।। पु०
सात खेत्र जिनजी कहे, जिनहर ने जिनबंब ।
संघ चतुर्विध पुस्तक, न करो भगति विलंब ।।३५।। पु०
जिनहरथी जस विस्तरइं, जिम भरतेसर राय ।
सेत्रूंज जई जिनहर करइं, मणिमय बिंब सोहाय ।।३६।। पु०
वली अष्टापद उपरे, सिंहनिषद्या प्रासाद ।
जिन चोवीसइ थापीआ, लीधो जगि जस वाद ।।३७।। पु०
दंडवीर्यं-सगरादिकिं, कीधा जीर्ण उद्धार ।
इम अनेक जिनहर थकी, पाम्या भवजल पार ।।३८।। पु०
धन धन संप्रति भूपती, धन धन कुमर भूपाल२७ ।
धन धन धरणो संघवी, विमल२८ अने वस्तपाल२९ ।।३९।। पु०
इम अनेक श्रावक हुआ, जेणे रोप्या जस थंभ ।
साते खेत्र संतोषीआ, थाप्या श्री जिनबिंब ।।४०।। पु०
[ढाल-4]
।। राग-रामगिरी ।।
गौतम जाणि जंबू पछी – ए ढाल
इणि परि सुणी गुरु देशना, जाग्या बंधव दोय रे ।
दिनकर किरणना संगथी, कमल जिम विकसित होय रे ।।४१।। इ०
राजीया वजीया मन चिंतवइं, तन धन अथिर जग एह रे ।
पुण्य करणी करी राखीइं, अचल जगि कीरति देह रे ।। ४२।। इ०
चतुर कारीगर तेडीआ, आप्या अरथना पूर रे ।
सखर प्रासाद रचना करो, परहरी आलस दूर रे ।।४३।। इ०
कोरणी सबल कारीगरी, अचल उन्नत थिर थंभ रे ।
रंग मंडप रलीयामणो, उलसइ धज कनक कुंभ रे ।।४४।। इ०
भलीय भांति भूंइरूं कर्युं, कहल बद्ध काम अभिराम रे ।
परम पोढी सबल मांडणी, खरचीआ लख्यबद्ध दाम रे ।।४५।। इ०
मनि मनोरथ प्रतिष्ठा तणो, पूरिओ पुण्य परभावि रे ।
साधु सामी३० सुपरिं३१ साचवे, निरमल नव नवें भावे रे ।।४६।। इ०
संवत सोल च्युंआलींसइं३२, जेठ शुदि बारसि यांहि३३ रे ।
श्री विजयसेनसूरी करइं, बिंबनी थापना त्यांहि३४ रे ।।४७।। इ०
[ढाल-5]
राग-धन्यासी (श्री)
।। अऊ उत्तर करें ए – ए ढाल ।।
घर देहरासरें थापीआ ए, शांति जिणेसर राय तो ।
नामें नवनिधि संपजे ए, दरिसनि दोलति भराय तो ।।४८।।
जिनवर वंदिइं ए श्री चिंतामणि पासतो मनि आणंदीइं ए । आंचली
देहरइं बेठा जगगुरू , जगबंधव जगनाथ तो ।
चिंतामणि सविं चींतव्युं ए, पूरइं पारसनाथ थो ।।४९।। जि०
भूंइरइं३५ बेठा सुखकरू ए, थंभणपास जिणंद तो ।
मूरति मोहनवेलडी ए , भविजन कमल दिणंद तो ।।५०।। जि०
वली भूइरामांहि मनोहरू ए, वीर जिणेसर बिंब तो ।
वली प्रतीमा श्री ऋषभनी ए, आपें शिव अव(वि)लंब तो ।। ५१।। जि०
पारिख वजीआ राजीआ ए, इणी परिं जगि जस लीध तो ।
काम अनोपम धर्मनां ए, वली तिणें बहुलां कीध तो ।।५२।। जि०
बांदोडइं३६ गोहा३७ पासें ए, देउल३८ कराव्यां दोय तो ।
पास करहिडो३९ नेमजी ए, जिन जूहारइं सहु कोय तो ।।५३।। जि०
देउल एक कराविउं ए, वलि बंदिर गंधार तो ।
श्री नवपल्लव पासजी ए, तिहां थाप्या सुखकार तो ।।५४।। जि०
जिनहर एक करावीउं ए, सुंदर नेजा४० गामि तो ।
मरुदेवी सुत मनोहरू ए, सोहें तेणें ठामि तो ।।५५।। जि०
श्री विजय तिलकसूरितणो ए, दीक्षा महोच्छव ताम तो ।
किधो मनि उलट धरी ए , खरची बहोला दाम तो ।।५६।। जि०
राणपुरें चोमुख तणुं ए, बिंब भराव्युं एक तो ।
दक्षिण पोलिं धन बहु ए, खरच्युं धरी विवेक तो ।।५७।। जि०
सरग भुवन सरीखा करयां ए, एणी परिं सात प्रासाद तो ।
मेरूसिखर जिन मनोहरू ए, टालें सवि विखवाद तो ।।५८।। जि०
जीर्ण्ण ऊधार घणा कर्या ए, पोष्यां साते खेत्र तो ।
साधु सामी संतोषीआ ए, फलीआं कीरति खेत्र तो ।।५९।। जि०
संघ सबल साथें लेई ए, कीधी आबू यात्र तो ।
गोडी रामपुरे जई ए, पुण्यइं पूर्यां गात्र तो ।।६०।। जी०
अकर अन्याय निवारिआ ए, मूंकाव्यां बहु बंद४१ तो ।
चोर निव(वा)र्या वध थकी ए, दूरे कर्या दुःख दंद तो ।।६१।। जि०
मूंक्या उपासिरइं४२ चंदरूआ ए, गामि गामि अभिराम तो ।
संख्या पार न पामीइं ए, जेहनां उत्तम काम तो ।।६२।। जि०
जस भगिनी सूत जस वरइं ए, पारिख नेमीदास तो ।
सेत्रुंजइ संघपति थया ए, पूरी जननी आस तो ।।६३।। जि०
पालइ रीति वडां तणी ए, पूरण पुण्य प्रकास तो ।
दुहिता सूत जसु दीपतो ए, तिम पारिख जयदास तो ।।६४।। जि०
जिहां ससी दिनकर जलनिधी ए, जग जिनमत आकास तो ।
तिहां लगे जयवंता हयो४३ ए, श्री चिंतामणि पास तो ।।६५।। जि०
॥ कलस ॥
इम मोहन मूरति सुगुण सूरती, थूण्यो पास चिंतामणि ।
मन इष्ट पूरइ कष्ट चूरइं, चतुर जिम चिंतामणि ।।६६।।
श्री हीरविजयसूरी पट्टधारी, जयो गुरु जेसिंग ए ।
श्री विजय तिलकसूरि तास पाटे, सबल राख्यो रंग ए ।।६७।।
श्री विजय तिलकसूरिंद पाटे, सूरि विजयाणंद ए ।
श्री किर्तिविजय उवझाय तस गछ, सोहाकर सुखकंद ए ।।६८।।
तस चरण पंकज सदा सेवक, वीनवे श्रीपास ए ।
मुझ चित मंदिर सुगुण सुंदर, पूरीइं प्रभु वास ए ।।६९।।
।। इति श्री चिंतामणि पार्श्व स्तवनं समाप्तं ।।
१. प्रसन्न, २. नर्मदा नदी ?, ३. खंभात, ४. महेल ?, ५. जन्म-मरण, ६. तरापो – (नावडी), ७. करंडियो, ८. सर्पनी फणा, ९. तोरणनी पंक्ति, १०. पगथियां, ११. हाथ, १२. सुंदर, १३. ज्योति, १४. स्थिर, १५. चोमेर, १६. कांगरा, १७. शेषनाग, १८. पंक्तिओ, १९. हारी गयो, २०. ना कह्या वगर/वार्या वगर/सतत, २१. केड उपर, २२. ठग लोको, २३. गोवामां, २४. सूबो, २५. फिरंगी, २६. जळ वहेण, २७. कुमारपाल राजा, २८. विमलमंत्री, २९. वस्तुपाल, ३०. साधर्मिक, ३१. सारी रीते, ३२. १६४४, ३३. ज्यारे, ३४. त्यारे, ३५. भोंयरामां, ३६. वडोदरा?, ३७. गोवा, ३८. देरासर, ३९. करेडा पार्श्वनाथ, ४०. खंभातथी बे माईल दूर आवेलुं नेजा गाम, ४१. बंदिवान, ४२. उपाश्रयमां, ४३. होजो।