सुपार्श्वनाथ प्रभुना जीवनचरित्र पर रचायेली प्रस्तुत रचना कुल ७ ढाळोमां पथरायेली स्तवन संज्ञक रचना छे। कृतिकारे अहीं प्रथम ढाळना मंगलाचरणमां मा शारदानी स्मरणा आलेख्या बाद शेष पद्यो द्वारा प्रभुजीनी गुण स्तवना तथा तेना फळनी आलेखना करी छे। वळी त्यार पछीनी बीजी ढाळमां कृति रचनानुं प्रयोजन तथा कृतिनुं अभिधेय दर्शावता कृतिकारे सिद्धपुरना सुपार्श्वनाथ प्रभुनी स्तवना गूंथी छे। खास आ वर्णनामां जोवा मळती सिद्धपुरना सुपार्श्वनाथ प्रभुनी मोटी प्रतिमानी नोंध अहीं विशेष ध्यानार्ह छे।
आम २ ढाळ सुधी रचनानी पूर्वभूमिका बांधी कृतिनी त्रीजी ढाळथी कृतिकारे प्रभुना जीवनचरित्रनी वर्णनानो प्रारंभ कर्यो छे। आ वर्णनामां तेमणे प्रभुना जन्मस्थानथी मांडी माता-पिता-वंशना नाम, पूर्वभव, मातानुं स्वप्नदर्शन, पंडितनुं स्वप्नफळकथन, इंद्रनो मेरु-अभिषेक, प्रभुनो जन्म, जन्ममहोत्सव, नामकरण, देहलावण्य, लग्न, लोकांतिक देवनी विनंति, सांवत्सरिक दान, दीक्षा, केवळज्ञान, समवसरण मंडाण, संघ स्थापना, परिवार तथा निर्वाणनी वातो अनुक्रमे आलेखी शेष १० पद्योमां पोतानी गुरुपरंपरानी तेमज कृतिरचना संवतनी आलेखना पूर्वक कृतिनुं समापन कर्युं छे। खास आ विगतोमां जोवा मळती प्रभुना जन्मोत्सवनी तथा देहलावण्यनी विगतो काव्यत्वनी दृष्टिए, तो प्रभुना परिवारनी विगतो सैद्धांतिक दृष्टिए महत्त्वनी गणाय।
कृतिकार परिचय
कृतिकारे पोते नोंध्यु छे तेम तेओ आ. श्री हीरविजयसूरिजीनी परंपरामां आ. श्रीविजयसेनसूरिजीनी पाटे गणि कनकविजयजीना शिष्य जीतविजयजी छे। जोके तेमना विशे कोई रेफरन्स मळतो न होवाथी विशेष कशुं लखी शकाय तेम नथी। कृतिनी रचनाशैली जोतां कृतिकारश्री सिद्धांतना सारा जाणकार होवानुं जणाय छे।
प्रत परिचय
प्रस्तुत कृतिनुं संपादन श्रीडोसाभाई अभयचंद ज्ञानभंडारनी १ मात्र हस्तप्रत परथी करायुं छे। अ तथा य ना पाठभेदो छोडी दईए तो कृतिमां अन्य लेखन दोषो ओछा छे। लेखन परथी प्रतनो समय वि. १७मी सदी जणाय छे। रचनानी नजीकना समयनी प्रत होवानी पूरी संभावना छे। खास संपादनार्थे कृतिनी नकल आपवा बदल उपरोक्त भंडारना व्यवस्थापकश्रीनो खूब खूब आभार।
श्री सुपार्श्वजिन स्तवन
॥ ॥ श्री सारदाइ(य) नमः।। [ढाल-१]
सरसति अमृत-रस वरसती, मइ ध्याइ तुं हृदय मज्झारि ।
मात मुज्झ मुखि वास करे, जिम गाउं जिनपति सार ।।१।।
तुज्झ पसाइं त्रिभोवनपति, स्तवसउं मनि उल्हासि ।
संकट विकट१ दुरइं टलइ, पुहुचइ मननी आस ।।२।।
तुझनइं जे पूजइ सदा, प्रणमइ बइहइ२ कर जोडि ।
तेह घरि बहु उछव तदा, वाधइ संपति कोडि ।।३।।
जिनपति-गुण गावा भणी, कोडि जीभ मुखि होइ ।
आय३ असंख सागर४ भलुं, {तुहइ?} गुण पार न पामइ कोइ ।।४।।
निर्मल उलट५ अंगइं धरी, स्तवसुं श्रीजिनराय ।
वामन६ निज हस्तइं करी, देवतरु-प(फ)ल७ किम खाय ।।५।।
कोकिल मधरुं जे लवइ८, ते आम्रतणइ सुपसाय९ ।
तिम सरस वचन जे हुं भणुं, ते तुम्ह महिमा जि[न]राय ।।६।।
।। [ढाल-२] ।। राग-केदारू ।।
निज भुजा-बलइं करीजी, सागर किम उतराय ।
स्वणा(र्णा)द्रि१० ते तोलतांजी११, पार न पाम्यउ जाय ।।७।।
रे जिनजी! तुं भावठि१२ भंजनहार, सुख-संपतिदातार (आंकणी)
बुद्धि विना हुं मानवीजी, तुं प्रभु गुणमणि-खाणि ।
तुझ भक्ति हुं प्रेरीओजी, मुझ हुयो मधुरी वाणि ।।८।। रे…
निर्मल गुण स्वामीतणाजी, गातां वाधइ वान१३ ।
नाम गोत्र तुम ध्यायतांजी, वाधइ कविजन-न्यान ।।९।। रे…
सिद्धपुरी-मंडण भलुंजी, सोहइ श्रीसुपास ।
मूरति पोढी१४ निर्मलीजी, वा(वां)दिं पहुचइ आस ।।१०।। रे…
मात पिता कुल किम जाणीइजी, किम पामी अरिहंत-ऋद्धि ।
केवलज्ञान किम पामीउंजी, पोहोता किणी परइं१५ सिद्ध(द्धि?) ।।११।। रे…
।। [ढाल-३] ।। राग-गुडी ।।
सयल-द्वीप-सिणगार, जंबुद्वि(द्वी)प भलउ ।
जोअण लक्ष ते विस्तर्यु ए ।।१२।।
सोहइ वृत्ताकार१६, दर्पण-तल जस्यु१७ ।
द्वीप समुद्र वचिं सुंदरू ए ।।१३।।
भरतखंडमाहिं सार, नयरी वाणारसी ।
अमरपुरी१८ ते अवतरी ए ।।१४।।
प्रतिष्ठित तिहां राय, राज्य पालइ भलउं ।
वइरी सवि ते वसइं करी ए ।।१५।।
तस घरिं सुंदरी जाणि, सीलइं सीता जसी ।
रूपइं रंभा अवतरी ए ।।१६।।
प्रथवी राणी तेह, निस भरी१९ पुढीअ२० ।
निर्मल-मन पोतइ करी ए ।।१७।।
ग्रीवेग छठइ सार, सुर-सुख भोगवी ।
तास उअरइं२१ प्रभु अवतरू ए ।।१८।।
चउद सुपन विख्यात, देखइ कामिनी ।
पहइलइ२२ मेगल२३ गुणे भर्यु ए ।।१९।।
स्वेतवर्ण छे(छ)इ काय, उंचइ गिरी(रि) सम ।
जाणे ईरावण२४ अवतरू ए ।।२०।।
स्वपन ते बीजइ जोय, धवल धोरी२५ भलउ ।
सकल सोभा अलंकरू ए ।।२१।।
त्रीजइ केसरी सीह, दीसइ मलपतउ२६ ।
आवइ ते अंबर थकी ए ।।२२।।
स्वपन ते चउथइ सार, सिरिदेवी वली ।
दीठी हेमाचल थकी ए ।।२३।।
।। ढाल-[४] ।। राग – केदारानी ।।
सोहइ कुश(स)मनी माल, पंचवरण विशाल ।
पांचमइ ते भणुं ए, लांबी अति घणुं ए ।।२४।।
शशि छठ(ट्ठ?)इ उदार, तेजइं सोहइ सार ।
ग्रहगण-मं[ड]णउ२७ ए, तिमर-विहंडणउ२८ ए ।।२५।।
रवि सातमइ विशाल, तेजइं झाकझमाल२९ ।
अष्टमइ धज भलउ ए, सोहइ निरमलउ ए ।।२६।।
नवमइ कुंभ ते तुंग३०, सोहइ अभिनव रंग३१ ।
पदम-सर अति भलुं ए, दसमइ निरमलुं ए ।।२७।।
अग्यारमइ सायर जोय, उदक३२ खीर-सम होय ।
द्वादसमइ सुखकरू ए, विमान ते सुंदरू ए ।।२८।।
तेरमइ रतनं सोय, मेरू(रु) सम गढ होय ।
वह्नि३३ चउदमइ ए, निर्ध्दू(र्धू)म३४ मनि रमइ ए ।।२९।।
एहवां सुपन विख्यात, देखी जागइ मात ।
उठइ आदरी३५ ए, सुपन ऋ(ह्र?)दय धरी ए ।।३०।।
चालइ मननइ रंगि, आवइ प्री[य]नइं सिं(सं)गि ।
गजगति सुंदरी ए, निर्मल चित करी ए ।।३१।।
पउ(पु)हुति मननइं खंति३६, पडिबोहइ३७ निज कंत ।
रूपइं राजती३८ ए, अमृत भाखती ए ।।३२।।
प्रीय बोलावइ ताम, तुम्हे आव्या कुणि कामि(म?) ।
पु(पू?)छइ मनि रली३९ ए, कामिनी कहि वली ए ।।३३।।
प्रीय सुणउ सुपन उदार, दीठां दस वली च्यारि ।
कहु कुंण फल हुसइ४० ए, मुज्झ मनि ते वसइ ए ।।३४।।
वचन सुणी राय ताम, बोलइ अरथ अभिराम ।
सुत हुसइ कुल-तिलउ ए, रूपइं गुणनिलउ४१ ए ।।३५।।
अनुक्रमि वउली४२ राति, तेडइ पंडित प्रभाति ।
राइं न(नि?)रखीया ए, मनसुं हरखीया ए ।।३६।।
पु(पू?)छइ राय विचार, बोलउ पंडित सार ।
अरथ सुपनतणु ए, राय तुम्हे सुणु ए ।।३७।।
सुपनतणइ अहिनाणि(ण?)४३, होसइ पुत्र सुजाण ।
षट खंड साधसइ४४ ए, कइ योग अभ्याससइ ए ।।३८।।
राइ(इं)४५ दीधां बहुमान, पंडित पाम्या दान ।
राइं संतोषीया ए, निज निज घरि गया ए ।।३९।।
।। ढाल-[५] ।। राग – फाग केरू ।।
आहे जेष्ट सुदि बारसि वरू, नख्यि(ख्य)त्र वैशाखा सार ।
दिवस तेणइ प्रभु जनमीआ(या?), वरतु जइ-जइकार ।।४०।।
आहे छपन दिसकुमरी भली, मली करइ जनमना काज ।
जिन जणणी गुण गायतां, साधइ मुगत्य(ति?)नुं राज ।।४१।।
आहे अमरी कारजि(ज?) ते करी, पोहोती निज निज ठामि ।
इंद्र-आसन तव थरहरइ४६, आवइ जिननइं कामि४७ ।।४२।।
इंद्र दस ते कलपना४८, वीस भवनपति४९ जोय ।
बत्रीस वली विंतरतणा५०, चंद सु(सू)र ते दोय ।।४३।।
आहे चउसु(स)ठि सुरपति हरखीया, अमर मलइ बहु कोडि ।
वाणारसी ते आवीआ(या?), प्रणमइ बइहइ कर जोडि ।।४४।।
अवस्वापनी५१ तव देइ(ई?) करी, कीधुं जिन प्रतिरूप५२ ।
मात पासइं ते ठवी५३, वज्री५४ करइ पंच रूप ।।४५।।
तेणइ रूपइं जिन लेई करि, आव्या सुरगिरि-शृंगि ।
कमलासनि५५ बइसी करी, जिननइं लइ(ई) उछ(च्छं)गि५६ ।।४६।।
स्नात्र-महोछव तिहां करइं, नाचइ अपछरा-वृंद ।
गीत गान तव ते भणइं, प्रणमइ सुरासुर-इंद ।।४७।।
स्नात्र करी प्रभु थापीआ(या?), निज मातानइ संगि ।
अंगु(गू)ठइ अम्रीत ठवी, सुरपति वलीआ(या?) रंगि ।।४८।।
राणीइं सुत जनमीउ, प्रहइ उगमतइ सूरि ।
रायनइ हुई वधामणी, वाधइ हर्षनुं पूर ।।४९।।
सजन सवे संतोषीया, राइं उछव कीध ।
गुण-निप्फन(न्न)५७ अति सुंदरू, नाम सुपासह दीध ।।५०।।
राय महोछव बहु करइ, कहितां न लहुं पार ।
सुत सुलक्षण गुणे भरउ, पांमउ जोवन सार ।।५१।।
स्वस्तिक लंछन दीपतउ, मस्तकि किरीट५८ उदार ।
भाल सोहइ अति निरमलुं, अर्ध ससि सम सार ।।५२।।
नयण कमलदल विकसित, उन्नत राजइ गाल ।
काने कुंडल अति भलां, तेजइं झाकझमाल ।।५३।।
नास्या ति(ती)क्षण दीपती, जाणे सुकनी५९ चंच६० ।
अधर प्रवाली६१ जीपता, दंत दाडिम-कली संच६२ ।।५४।।
राजइ रसना६३ पातली, नागरवेलिनुं पान ।
बिंबीफल६४ पाकां भलां, तालुं तेणइ वानि(न?) ।।५५।।
उन्नत अंस६५ दोए भलां, भुजादंड तरु-साख ।
हाथे मुद्रडी६६ दीपती, मोह्या मानव लाख ।।५६।।
मुख जसउ६७ पु(पू)निम चंदलउ, वाणी गंग-तरंग ।
हार हईइ अति दीपतउ, श्रीवछ६८-सोभित अंग ।।५७।।
पद-पंकज अति सुंदरू, सोहइ कुंकुमवन्न६९ ।
आंगुली कुंली७० मुगफळी, देखत मोहइ मन्न ।।५८।।
रूप अनंत प्रभुतणउं, तवतां७१ न लहुं पार ।
योवन वि(व)इ७२ जव आवीया, परणी राजकुमारि ।।५९।।
पंचविषय-सुख भोगवइ, पालइ राज वली सोय ।
हेमवरण७३ तन प्रभुतणउं, उ(उं)चउं धनुष शत-दोय ।। ६०।।
त्रिहु न्यानइं प्रभु दीपता, जीपता७४ सत्रु सार ।
अरि-दलनां मद मोडता७५, पाम्या जगि जइकार ।।६१।।
।। [ढाल – ६ ] ।। राग – मारूणी सी(सीं)धूओ ।। विष[य] न गांजीइ ए० – ए [देशी] ।।
तव लोकांतिक सुर बु(बू)झवइ७६, स्वामिनइं करइ परि(प्र)णाम ।
चारित्र-समइ प्रभु जाणीओ, दिइ दान संवत्छरी तामो७७ रे ।।६२।।
संयमश्री वरइ टालइ पापनुं पूरो रे, विघन दूरइं करइं ।।६३।। [आंचली][1]*
त्रण्यसइं कोडि निरमली, कोडि अठ्यासि(सी) होय ।
असीअ(य?) लाख सोहामणा, ए दान संवछरी जोयो रे ।।६४।। संयम…
न्हवण करी प्रभु अर्चीआ(या?), चूआ७८ चंदन गात्र ।
बत्रीस-बध(द्ध) नाटिक भलां, नाचइ तिहां वर पात्रो के ।।६५।। संयम…
चारित्र लेवा संचर्या, बइठा सिब(बि?)कामांहिं७९ ।
सुरपति नर सिब(बि?)का वहइं८०, हरख धरी मनमांहि रे ।।६६।। संयम…
सहस कुमरसउं आवीया, वन सहसंभ(ब?) मझारि ।
जेष्ट शुदि तेरसि दिनिं, लीघउ संयमभारो रे ।।६७।। संयम…
सिद्ध सवे प्रणमी करी, व्याहार८१ करइ भगवंत ।
सहइ ते परीसह आकरा, करइ करमनउ अंतो रे ।।६८।। संयम…
छदमस्था नव मासनी, ध्याइ सुकल ध्यान ।
अशोक तरु तलइ पामीउं, उज्वल केवलन्यानो रे ।।६९।। संयम…
।। [ढाल – ७ ] ।। राग – धन्यासी ।।
ततखिण सुरपति आवीया ए, प्रणमइ प्रभुना पाय कि ।
अंगिइं उलट धरी ए ।।७०।।
समोसरण सुरइं रचउं ए, तिहां बइठा प्रभु सार कि ।
चिहूं रूपइं करी ए ।।७१।।
द्वादस परषद८२ तिहां मलइ ए, दइ(ई) प्रभु देशना ताम कि ।
जोजि(ज)नगामिनी८३ ए ।।७२।।
संघ चतुर्विध थापना ए, पंचाणु गणधर सार कि ।
दीसइं अति भला ए ।।७३।।
त्रणि लाख मुनि जाणी[इ?] ए, साधवी त्रीस हजार कि ।
चिहुं लाखइ आगली ए ।। ७४।।
विक्रि[य?]लबधितणा८४ धणी ए, सोहइ चउद हजार कि ।
उपरि त्रण्यसइं ए ।।७५।।
वादी८५ प्रभु-सासनि भला ए, सत-चउरासी सार कि ।
विद्यासागरू ए ।।७६।।
अवधिज्ञानी८६ जाणीइ ए, नव सहस ते जोअ(य?) कि ।
संधे(संदेह?) सवि हरइं ए ।।७७।।
केवलज्ञानी प्रभुतणा ए, सहस-एकादस सोय कि ।
सिद्ध(द्धि?)-वधु(धू) वर्या ए ।।७८।।
मणपज्जवनाणी८७ सुणउ ए, सहस-नव ते होय कि ।
उपरि डउढसउ८८ ए ।।७९।।
चउद पूरवधर८९ वंदीइ ए, सहस-दोय वली त्रीस कि ।
जिन-सद्रीस९० भला ए ।।८०।।
हवइ श्रावक ते प्रभुतणा ए, लाख अढी सात सहस कि ।
जिन-गुणे रंजीया९१ ए ।।८१।।
श्रावी९२ संख्या ते सुणउ ए, लाख च्यार त्राणुं सहस कि ।
सीलइ सोभती ए ।।८२।।
एह परवार प्रभुतणउ ए, तवीउ मइं लवलेस९३ कि ।
महिमा गुरुतणउ ए ।।८३।।
संघ चतुर्विध थापीउ ए, पूरव लाख वीस कि ।
आयु सवे भोगवी ए ।।८४।।
पंचसयांसु परवर्या९४ ए, करी स(सं)लेखण९५ मास कि ।
निर्मल ध्यानसं(सु) ए ।।८५।।
फागुण वदि सातमि वरू ए, सम(म्मे)तसिखर वर शृंगि कि ।
जिन मुक्ति गया ए ।।८६।।
पट्ट-परंपर दीपता ए, श्रीहीरविजयसूरिंद कि ।
महिमासागरू ए ।।८७।।
हीरजी पाटइं सोभता ए, श्रीविजयसेन मुणिंद कि ।
भविजन हितकरू ए ।। ८८।।
तपगछमंडण-दिनकरू ए, जसु नमइ दिल्ली-भूप कि ।
नाम हृदय धरी ए ।।८९।।
पंडित-शिर-चूडामणी९६ ए, बुध कनकविजइ गण(णि) साधु कि ।
सीलइं सोभता ए ।।९०।।
तस पद-पंकज-मधुकरू ए, प्रणमइ जीतविजय भावि कि ।
दिउ सुक संपदा ए ।।९१।।
एह तवन भावइं भणइं ए, लहइ ते संपति कोडि कि ।
शिव[र]मणी वरइ ए ।।९२।।
संवत संख्या मनि धरउ ए, स्वेत वाजी९७ रितु९८ सार कि।
अब्द९९ हवइ भणउं ए ।।९३।।
इंद्री(द्र?)-सखी१००(१६६७) ते मनि धरउ ए, आसो शुदि त्रयोदसि(सी) जाणि कि ।
वार शुक्र भलउ ए ।।९४।।
कलस
इअ सुपास सामी सिद्धगामी ध्याइउ मइं जिनवरो,
सिद्धपुर-मंडण दुरी(रि)त-खंडण कुमति-घूक१०१-दिवाकरो ।
जिहां अचल महिधर गगनि भास्कर असुर-सुर-नर-तारको,
बुध कनकविजय गणि जीत जंपइ जयउ त्रिभू(भु)वन तारको ।।९५।।
शब्दार्थ
१. दुःखे दूर करी शकाय तेवुं, २. बे, ३. आयुष्य, ४. एक जैन काळ-विभाग, ५. होंश, ६. बटको पुरुष, ७. कल्पवृक्षनां फळ, ८. बोले छे, ९. ने लीधे, १०. मेरु पर्वत, ११. मापतां, १२. पीडा, १३. प्रतिष्ठा, १४. विशाळ, १५. कई रीते, १६. गोळ, १७. जेवुं, १८. देवलोक, १९. आखी रात्रि, २०. सूती हती, २१. कुक्षिमां, २२. पहेले, २३. हाथी, २४. ऐरावत, २५. बळद, २६. ठस्सा पूर्वक चालतो, २७. ग्रहोना समुदायमां शोभतो, २८. अंधकार दूर करतो, २९. दैदीप्यमान, ३०. ऊँचो, ३१. नवा, ३२. पाणी, ३३. अग्नि, ३४. धुमाडा वगरनो, ३५. मनमां विचारवुं, ३६. उमंगथी, ३७. जगाडे छे, ३८. शोभती, ३९. मनना आनंदपूर्वक, ४०. थशे, ४१. गुणना स्थान जेवो, ४२. पसार थई, ४३. निशानी, ४४. जीतशे, ४५. राजाए, ४६. कंपे छे, ४७. माटे, ४८. कल्प(आचार) प्रमाणे प्रवृत्ति करता देवो, ४९. भुवनमां रहेता देवोनी जाति, ५०. व्यंतर जातिना देवो, ५१. एक प्रकारनी गाढ निद्रा, ५२. अन्य रूप, ५३. स्थापी, ५४. इंद्र, ५५. पद्मासनमां, ५६. खोळामां, ५७. गुणथी थयेलुं, ५८. मुगट, ५९. पोपटनी, ६०. चांच, ६१. परवाळा (जेवा), ६२. रचना (जेवा), ६३. जीभ, ६४. टींडोरा, ६५. खभा, ६६. वींटी, ६७. जेवुं, ६८. पुरुषनी छातीना मध्यमां रहेलो वाळनो गुच्छो, ६९. लाल, ७०. कोमळ, ७१. स्तवना करतां, ७२. युवानीमां, ७३. सुवर्णवर्ण, ७४. जीतता, ७५. चूरता, ७६. बोध आपे छे, ७७. त्यारे, ७८. विविध गंधद्रव्यना मिश्रणवाळुं द्रव्य, ७९. पालखी, ८०. उपाडे छे, ८१. विहार, ८२. सभा, ८३. योजन सुधी संभळाती, ८४. शरीर विकुर्वणानी शक्ति, ८५. वाद(चर्चा) करनारा, ८६. अतींद्रिय ज्ञान विशेष, ८७. अतींद्रिय ज्ञान विशेष, ८८. दोढसो, ८९. जैन विशेष शास्त्रना ज्ञानवाळा मुनि, ९०. परमात्मा जेवा, ९१. खुश थया, ९२. श्राविका, ९३. थोडुं, ९४. युक्त, ९५. अणसणव्रत, ९६. मुगट समान, ९७. घोडा, ९८. ऋतु, ९९. वर्ष, १००. इंद्राणी, १०१. घुवड.
o O o
*लहिया द्वारा आंकणीने गाथांक भूलथी अपायो होय तेम जणाय छे, अमे तेने यथावत् राख्यो छे।