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सूचीकरण शोध नवनीत लेखमाला- लेख २२ २० विहरमानजिनना लंछन संदर्भे थोडुंक संशोधन गजेन्द्र शाह

१४ महास्वप्न, अष्टमंगल, जिनेश्वरोनां लंछन आदि संदर्भेनां चित्रो, शिल्पांकनो विविध जग्याए जोवा मळे छे। आ चित्रोमां पण १४ महास्वप्नोनां केटलांक चित्रो तथा प्रतीको घणी जग्याए लोकरूढिथी के गतानुगतिक बनावामां आवतां होय तेवुं लागे छे, तेनुं एक उदाहरण छे लक्ष्मीजी। जे लोकरूढि आधारित ज प्रायः होय छे, जेना हाथमां पंखो नथी होतो, ज्यारे कल्पसूत्रमां दर्शावेल वर्णनमां एक हाथमां पंखो छे।

श्री अंकुर जैन संघना जिनालयमां १४ महास्वप्नादिना शिल्पांकन करवानुं थतां त्यांना ट्रस्टीवर्य श्री पंकजभाई तथा श्री मोहितभाईने विचार आव्यो के आ प्रकारना प्रतीको मात्र लोकरूढिथी के गतानुगतिक न बनावतां प्राचीन शास्त्र-ग्रंथोना आधारे बने तो आगामी पेढीने वास्तविक संदेश मळे। आ भावनाथी तेओए घणी जग्याएथी विविध चित्रोनुं संकलन कर्युं पण संपूर्ण संतुष्टि न मळतां तेओए हमणां थोडाक ज दिवसो पूर्वे पूज्य आचार्य श्री अजयसागरसूरि म.सा.नी प्रेरणाथी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबानी मुलाकात लीधी। पूज्य आचार्यश्रीनी सूचनाथी तेओ मने मळ्या। ज्ञानमंदिरना अन्य महत्त्वपूर्ण कार्योनी व्यस्तता वच्चे आ दिशामां विचार करवानो कोई अवसर न बन्यो। पहेली वखत आ प्रकारनो प्रस्ताव आवतां सहज स्वयंनी अभिरूची पण जागृत थई अने थोडुंक संशोधन करी तेमने यथायोग्य मार्गदर्शन आपवानो प्रयास कर्यो।

आ सूचीमां २० विहरमानजिननां लंछन पण जोवानां हतां। आ दिशामां केटलाक संदर्भो जोतां जे ध्यान पर आव्युं तेनो लाभ अन्य विद्वानो तथा जिज्ञासुओने मळे अने आ दिशामां हजी वधु शोध कोई करे ते हेतुथी अत्रे प्रस्तुत करुं छुं।

  1. कोबानी विचार गाथा नामनी एक हस्तप्रत क्र. ७०३५२ (समय अनुमाने वि.सं. १९मी सदी पूर्वार्ध) तेमां विहरमानजिन लंछनना नामे रहेल एक छूटक गाथा- (रत्नसंचयनी गाथा साथे घणुं साम्य धरावे छे पण अपेक्षाए आ पाठ वधु विश्वसनीय अने आदर्श कही शकाय तेवो लागे छे)

वसह १ गय २ हरिण ३, मक्कड ४ रवि ५ चंद ६ मिआरि ७ ।

हत्थि ८ तह चंदे ९ सूरे १०, संखे ११ वसहे १२ पउमे १३ पउमे अ १४ ॥

ससि १५ सूर १६ वसहे १७ हत्थी १८,  चंदे १९ सूरे २० ऊरुसु हुंति लंछणया।

इय विहरमाण जिणवर, वीसाइक्कमेण नायव्वा ॥

अनुक्रमथी विहरमान जिननां लंछन आ पाठमां स्पष्ट जणाई आवे छे। मिआरिनो अर्थ मृग-अरि अर्थात् मृगनो शत्रु सिंह समझवानो छे। आ लंछन परमात्मानी जांघ पर होय छे, शेष सुगम छे।

११मा श्री वज्रधरस्वामीना लंछन वृषभ, १७मा जिनना लंछन हाथी तथा १८मा जिनना लंछन वृषभनी पुष्टि करतां प्रमाणो-

  1. अंचलगच्छीय पू. आ. श्री हर्षनिधानसूरि संगृहित रत्नसंचयमां गा. ५३४ (शास्त्र संदेश माला भा. १७ पृ. १९०मां )-

वसह १ गय २ हरिण ३, मक्कड ४ रवि ५ चंद ६ मिआरि ७ हत्थि ८ तह चंदे ९।

सूरे १०, वसहे ११ वसहे १२, पउमे १३ पउमे य १४ ससि १५ सूरा १६॥

हत्थी १७ वसहे १८,  चंदा १९ सूरे २० ऊरूसु हुंति लंछणया।

इय विहरमाण जिणवर-वीसा य जहक्कमे नेया ॥५३४॥

  1. कोबा ज्ञानमंदिरनी रत्नसंचयनी सहुथी प्राचीन(वि.सं.१७६९) प्रत क्र. ९०६१ (पृ. ३५बी.) तथा कोबानी रत्नसंचयनी बीजी प्राचीन (वि.सं. १७७२) प्रत क्र.५६५०८ (पृ. ३३ए)

वसह १ गय २ हरिण ३, मक्कड ४ रवि ५ चंद ६ मिआरि ७ हत्थि ८ तह चंदे ९।

सूरे १०, सिंघे ११ वसहे १२, पउमे १३ पउमे अ १४ ससि १५ सूरा १६॥

हत्थी १७ वसहे १८,  चंदे १९ सूरे २० उअरेसु हुंति लंछणया।

ईअ विहरमाण वर, वीसा य परमेव नेअवा ॥

  1. उपरोक्त बन्ने हस्तप्रतमां टबामां सिंघेनो अर्थ शंख न करतां स्पष्ट वृषभ ज कर्यो छे. शंखेनुं अपभ्रंश सिंघे थयुं होई शके छे। टबाकार द्वारा वृषभ अर्थ क्या आधारे करायो छे ते विचारणीय छे।
  2. “तीर्थंकर वंदना” (प्रकाशक- रंजनविजयजी जैन पुस्तकालय) नामे आधुनिक पुस्तकमां विविध भगवानना लंछन आपेल छे तेमां पण आ भगवान माटे वृषभ ज दर्शावेल छे.

११मा श्री वज्रधरस्वामीना लंछन शंख, १७मा जिनना लंछन वृषभ अने १८मा जिनना लंछन हाथीनी पुष्टि करतां प्रमाणो-

  1. “श्री आत्मानंद प्रकाश” मेगेझिनमां (पुस्तक ३८मुं, अंक ११मो, वि.सं. १९९७, जेठ) पृ. ३१४मां अंकना संपादके ११मा भगवानना लंछनमां स्पष्ट शंख दर्शावेल छे.
  2. वि.सं. १९२७नी एक हस्तप्रतमां (ह.प्र.क्र.११८५०९), कर्ता मोहन मुनिनी कृति “विहरमानजिन स्तवन-लंछन” (स्पेश्यल लंछन पर बनेल आ स्तवनमां) ११मा श्री वज्रधरस्वामीनुं लंछन शंख दर्शावेल छे. (रचना वर्ष नथी, ६ गाथानुं स्तवन छे.)
  3. वि.सं. १९मी पूर्वार्धनी कोबानी ह.प्र. क्र. ७०३५२मां लंछननी छूटक मूळ गाथामां शंख स्पष्ट छे.
  4. १९मी सदीनुं छूटक पानुं कोबा ह.प्र. क्र. ११९०८६मां लंछन दर्शावेल छे. तेमां शंख स्पष्ट छे.
  5. १९मी सदीनी कोबानी ह.प्र.क्र. ७०८६७मां पण शंख लंछन आपेल छे.

निष्कर्ष- ऊपरोक्त संदर्भोने जोतां ११मा वज्रधरस्वामीनुं लंछन शंख, १७मा वीरसेननुं वृषभ अने १८मा महाभद्रनुं लंछन गज वधु संगत जणाय छे।

उपरोक्त नानकडी शोध परथी योग्य जणातां लंछन

1. वृषभ

6. चंद्र

11. शंख

16. सूर्य

2. हाथी

7. सिंह

12. वृषभ

17. वृषभ

3. हरण

8. हाथी

13. कमल

18. हाथी

4. वांदरो

9. चंद्र

14. कमल

19. चंद्र

5. सूर्य

10. सूर्य

15. चंद्र

20. सूर्य

 

 

 

आ विषयमां विशेष शोध विद्वानो करे अने वास्तविकताने वधु उजागर करे तेवी विनंती।

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