१४ महास्वप्न, अष्टमंगल, जिनेश्वरोनां लंछन आदि संदर्भेनां चित्रो, शिल्पांकनो विविध जग्याए जोवा मळे छे। आ चित्रोमां पण १४ महास्वप्नोनां केटलांक चित्रो तथा प्रतीको घणी...
एक दृष्टि में मूल कृति परिचय : विदग्धमुखमण्डन नामक यह कृति बौद्ध विद्वान धर्मदास के द्वारा वि.सं. १३१० के आसपास रची गई है। यह अलङ्कार विषयक पद्यात्मक कृति है। इसमें प्रहेलिका और चित्रकाव्य से सम्बन्धित भी जानकारियाँ दी गई हैं। संस्कृत भाषामय कुल ४ परिच्छेदों व २७६ श्लोकों में निबद्ध है। रचनाशैली रोचक एवं बोधगम्य है। इसकी उपयोगिता और सरलता को लक्ष्य में रखते हुए अनेक जैन-जैनेतर विद्वानों ने अवचूरि, टिप्पण, टीका व व्याख्याएँ की हैं। इनमें कई टीकाएँ हैं, कुछेक आधुनिक टीकाएँ भी हैं जो प्रकाशित हैं, शेष प्राचीन टीकाएँ संभवतः अद्यावधि अप्रकाशित हैं। इस दिशा में विद्वानों को ध्यानाकृष्ट करने हेतु इस लेख के माध्यम से स्मरण दिलाना चाहता हूँ।
सुपार्श्वनाथ प्रभुना जीवनचरित्र पर रचायेली प्रस्तुत रचना कुल ७ ढाळोमां पथरायेली स्तवन संज्ञक रचना छे। कृतिकारे अहीं प्रथम ढाळना मंगलाचरणमां मा शारदानी स्मरणा आलेख्या...
एक दृष्टि में कृति परिचय : कृतिनाम- उपदेशमाला का टबार्थ। तपागच्छाधिपति आचार्य श्रीविजयप्रभसूरि के साम्राज्य में श्री धीरविमल गणि के शिष्य आचार्य श्री ज्ञानविमलसूरि...