प्रस्तुत कृति मुख्यतया ऋषि जसवंतजीना चातुर्मास स्थानोनुं निदर्शन करती ऐतिहासिक रचना छे। जेमां प्रारंभना १४ पद्योमां कृतिकारश्रीए ऋषिजीनी गुरुपरंपराना नामोल्लेखथी मांडी तेमना माता, पिता,...
कुल ८४ पद्योमां गूंथायेल प्रस्तुत रचना सिरोही नगरना आदिनाथ प्रभुना चौमुख जिनालयनी प्रतिष्ठाने वर्णवती ऐतिहासिक रचना छे। कृतिकारे अहीं भाषा तथा वस्तु ए बे...
प्रस्तुत कृतिनो प्रारंभ कवि द्वारा सरस्वती माताने प्रार्थना करवा पूर्वक करायो छे। देशी भाषामय पद्यात्मक आ कृतिनो छंद प्रकार सलोको छे। सलोको सांभळतां नेमिनाथजीना...
उत्तराध्ययनसूत्र की सुगमार्थ टीका। टीकाकार का नाम-पुण्यहर्ष के शिष्य वाचक अभयकुशल। टीका की भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-गद्य। विषय-आगमिक, ग्रंथाग्र-९२४३, रचना संवत्-व स्थल-अज्ञात। एकमात्र ही हस्तप्रत है। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।