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Category: Jainism

लखमण कविकृत नेमिनाथ स्तवन गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी

जैन दर्शनमां जो सौथी वधु काव्यो कोईने उद्देशीने रचाया होय तो ते प्रभु नेमनाथने उद्देशीने लखायां छे। कविओए प्रभुना जन्मथी मांडी बाल्यकाळ, बाल्यकाळनां पराक्रमो,...

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अप्रकाशित कृति परिचय लेखमाला-लेख १७ उत्तराध्ययनसूत्र की सुगमार्थ टीका : कृति परिचय पं. संजय कुमार झा

उत्तराध्ययनसूत्र की सुगमार्थ टीका। टीकाकार का नाम-पुण्यहर्ष के शिष्य वाचक अभयकुशल। टीका की भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-गद्य।  विषय-आगमिक, ग्रंथाग्र-९२४३, रचना संवत्-व स्थल-अज्ञात। एकमात्र ही हस्तप्रत है। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।

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सूचीकरण शोध नवनीत लेखमाला- लेख २० बृहच्छान्ति स्तोत्र-गच्छभेद से प्रचलित पाठ परम्परा : एक परिचय पं. संजय कुमार झा

समाज में विधि-विधान, पूजा-पाठ, प्रतिष्ठा, उत्सव, मांगलिक कार्य व अन्य विविध अवसरों पर शान्तिस्तोत्र के पाठ का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है।...

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जैनेंद्रसागर मुनिकृत महावीरजिन २७ भव स्तवन गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी

प्रस्तुत कृति प्रभु महावीरना चरित्र पर प्रकाश पाथरती लघु रचना छे। कृतिकारे अहीं विविध देशीओमां रचायेली ८ ढाळोमां प्रभु वीरना २७ भवोनी वर्णना सुंदर...

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अप्रकाशित कृति परिचय लेखमाला-लेख १६ महादेवीसूत्र की दीपिका टीका : कृति परिचय लेखक- संजय कुमार झा

महादेवीसूत्र की दीपिका टीका। अर्थात् महादेवीसूत्र ज्योतिष ग्रन्थ की संस्कृतभाषामय दीपिका टीका। टीकाकार का नाम-वाचक धनराज। ये अंचलगच्छीय आचार्य श्रीभाववर्द्धनसूरि के प्रशिष्य एवं वाचक भुवनराज के शिष्य थे। टीका की भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-गद्य।  विषय-ज्योतिष, ग्रंथाग्र-१५००, रचना संवत्- वि.सं.-१६९२, रचना स्थल-पद्मावतीपत्तन। संलग्न कुल हस्तप्रतों की संख्या-१४ है। इसमें ७ प्रतें सम्पूर्ण एवं ७ प्रतें अपूर्ण हैं। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।

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सूचीकरण शोध नवनीत लेखमाला- लेख १९ विविधगच्छीय नवस्मरण-सप्तस्मरण कृति व पाठ स्पष्टीकरण लेखक- संजय कुमार झा

नित्य स्मरण करने योग्य, स्वाध्याय करने योग्य अथवा मांगलिक प्रसंगों में पाठ करने हेतु विशेष रूप नवस्मरण का उपयोग किया जाता है। यह एक...

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आचार्य विजयदेवसूरिकृत २४ जिन नमस्कार सा. विनीतयशाश्रीजी म.सा. (नेमिसूरि समुदाय)

आचार्य श्रीविजयदेवसूरिजी द्वारा करायेल चोवीश(२४) भगवानना गुणोने वर्णवती आ रचना छे। कृतिनी विशेषता ए छे के एक-एक गाथा द्वारा प्रत्येक परमात्मानी स्तवना कराई छे।...

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सुमतिरंग मुनिकृत (जिन) कवित्त चौवीसी गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी

हिंदी भाषामां रचायेली प्रस्तुत कृति मूळे चोवीस तीर्थंकरोने आश्रयीने करायेली अद्भुत स्तवना छे। कृतिकार सुमतिरंगे अहीं कवित्त नामना काव्य प्रकारमां परमात्माना विविध गुणवैभवने सुंदर...

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सूचीकरण शोध नवनीत लेखमाला- लेख २१ चन्द्र एवं अभिवर्द्धित संवत्सरानुसार महावीरजिन के ७२ वर्षायुमान विवरण-एक हस्तलिखित प्रत आधारित संजयकुमार झा

श्रुतसागरप्रेमी वाचकों के कर-कमलों में इस बार एक अद्भुत एवं रोमांचक शोध-सन्दर्भ प्रस्तुत किया जा रहा है। हस्तप्रत सूचीकरण कार्य के अन्तराल में कभी-कभी...

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अज्ञातकृत धर्म आराधना सज्झाय मुनि वंदनरुचिविजय (पू. सिद्धिसूरि(बापजी)म.सा. समुदाय)

जिनशासनमां श्रुतज्ञान ४ अनुयोगमां वहेंचायेलुं छे. (१) द्रव्यानुयोग (२) गणितानुयोग (३) चरणकरणानुयोग (४) कथानुयोग। आ दरेक सामान्यजनने समजवा बहु अघरा छे। एवा आ अघरा...

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