जैन दर्शनमां जो सौथी वधु काव्यो कोईने उद्देशीने रचाया होय तो ते प्रभु नेमनाथने उद्देशीने लखायां छे। कविओए प्रभुना जन्मथी मांडी बाल्यकाळ, बाल्यकाळनां पराक्रमो,...
जैन दर्शनमां जो सौथी वधु काव्यो कोईने उद्देशीने रचाया होय तो ते प्रभु नेमनाथने उद्देशीने लखायां छे। कविओए प्रभुना जन्मथी मांडी बाल्यकाळ, बाल्यकाळनां पराक्रमो,...
उत्तराध्ययनसूत्र की सुगमार्थ टीका। टीकाकार का नाम-पुण्यहर्ष के शिष्य वाचक अभयकुशल। टीका की भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-गद्य। विषय-आगमिक, ग्रंथाग्र-९२४३, रचना संवत्-व स्थल-अज्ञात। एकमात्र ही हस्तप्रत है। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।
समाज में विधि-विधान, पूजा-पाठ, प्रतिष्ठा, उत्सव, मांगलिक कार्य व अन्य विविध अवसरों पर शान्तिस्तोत्र के पाठ का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है।...
प्रस्तुत कृति प्रभु महावीरना चरित्र पर प्रकाश पाथरती लघु रचना छे। कृतिकारे अहीं विविध देशीओमां रचायेली ८ ढाळोमां प्रभु वीरना २७ भवोनी वर्णना सुंदर...
महादेवीसूत्र की दीपिका टीका। अर्थात् महादेवीसूत्र ज्योतिष ग्रन्थ की संस्कृतभाषामय दीपिका टीका। टीकाकार का नाम-वाचक धनराज। ये अंचलगच्छीय आचार्य श्रीभाववर्द्धनसूरि के प्रशिष्य एवं वाचक भुवनराज के शिष्य थे। टीका की भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-गद्य। विषय-ज्योतिष, ग्रंथाग्र-१५००, रचना संवत्- वि.सं.-१६९२, रचना स्थल-पद्मावतीपत्तन। संलग्न कुल हस्तप्रतों की संख्या-१४ है। इसमें ७ प्रतें सम्पूर्ण एवं ७ प्रतें अपूर्ण हैं। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूल सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।
नित्य स्मरण करने योग्य, स्वाध्याय करने योग्य अथवा मांगलिक प्रसंगों में पाठ करने हेतु विशेष रूप नवस्मरण का उपयोग किया जाता है। यह एक...
आचार्य श्रीविजयदेवसूरिजी द्वारा करायेल चोवीश(२४) भगवानना गुणोने वर्णवती आ रचना छे। कृतिनी विशेषता ए छे के एक-एक गाथा द्वारा प्रत्येक परमात्मानी स्तवना कराई छे।...
हिंदी भाषामां रचायेली प्रस्तुत कृति मूळे चोवीस तीर्थंकरोने आश्रयीने करायेली अद्भुत स्तवना छे। कृतिकार सुमतिरंगे अहीं कवित्त नामना काव्य प्रकारमां परमात्माना विविध गुणवैभवने सुंदर...
श्रुतसागरप्रेमी वाचकों के कर-कमलों में इस बार एक अद्भुत एवं रोमांचक शोध-सन्दर्भ प्रस्तुत किया जा रहा है। हस्तप्रत सूचीकरण कार्य के अन्तराल में कभी-कभी...
जिनशासनमां श्रुतज्ञान ४ अनुयोगमां वहेंचायेलुं छे. (१) द्रव्यानुयोग (२) गणितानुयोग (३) चरणकरणानुयोग (४) कथानुयोग। आ दरेक सामान्यजनने समजवा बहु अघरा छे। एवा आ अघरा...