आपणा पूर्वाचार्योए विविध ग्रंथ रचनाओ द्वारा मात्र जिनशासननी श्रुतसंपदा वधारी छे तेवुं नथी ते समयज्ञ महापुरुषोए जे समये जेनी आवश्यकता हती ते समये ते...
आपणा पूर्वाचार्योए विविध ग्रंथ रचनाओ द्वारा मात्र जिनशासननी श्रुतसंपदा वधारी छे तेवुं नथी ते समयज्ञ महापुरुषोए जे समये जेनी आवश्यकता हती ते समये ते...
चमत्कारचिन्तामणि पद्यानुवाद- अर्थात् चमत्कारचिन्तामणि ज्योतिष ग्रन्थ का पद्यानुवाद, कर्ता-श्रीसार, कर्ता के गुरु का नाम-रत्नहर्ष-खरतरगच्छीय क्षेम/खेमकीर्ति शाखा, भाषा-पुरानी हिन्दी, कृति प्रकार-पद्य। विषय-ज्योतिष, दोहा परिमाण-१०८, रचना संवत्-वि.सं.-१७वीं अनुमानित, संलग्न कुल हस्तप्रतों की संख्या-२१ है। वर्त्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है। सूचीकरण कार्यगत प्रत संपादनादि कार्यों में शुद्धि-वृद्धिपूर्वक प्रत सम्बन्धी सूचनाओं में परिवर्तन सम्भव है। कृति की मूलभूत सूचनाएँ यथावत् रहेंगी।
आ कृतिनी भाषा मारुगूर्जर छे। जे अत्यंत कर्णमधुर अने ताल लयबद्ध रचना करी छे। कृतिनी त्रीजी गाथामां कर्ताए ‘तीरथमाला बोलवा माता दिउ वरदान’ एम...
अरिहंत वंदनावलीनी जेम गुर्जर भाषामां रचायेली कोई रचना विशेष प्रसिद्धने पामी होय तो ते कवि श्यामजी देसाई कृत रत्नाकर पच्चीसी। मूळे तो स्वपापोनी आलोचनाना...
कृतिनाम- विवाहपटल-भाषा अर्थात् विवाहपटल का पद्यानुवाद, कर्ता-अभयकुशल, कर्ता के गुरु का नाम- पुण्यहर्ष-खरतरगच्छीय, भाषा-मा.गु., कृति प्रकार-पद्य. विषय-ज्योतिष, गाथा परिमाण-६३, रचना संवत्-अनुपलब्ध, संलग्न कुल हस्तप्रतों की संख्या-३५ है। वर्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह...
स्वर्णगिरिना नामथी प्रसिद्ध झालोरनगरनी वर्णना आलेखती रचना एटले ज प्रस्तुत गझल। मूळे क्षेत्रिय-गझलना दृष्टिकोणथी गूंथायेली आ गझलमां कृतिकारे झालोरनी ऐतिहासिकता वर्णववा साथे त्यांनी राजकीय,...
मूलकृतिनाम-जातकराजपद्धति, कर्ता-पं.यशस्वत्सागर, गुरु-यशःसागर, गच्छ-तपागच्छ, भाषा-संस्कृत, कृति प्रकार-पद्य. विषय-ज्योतिष, अधिकार-१६, लेखन व रचना संवत्-१७६२, लेखन व रचना स्थल-नरायणानगर, संलग्न कुल हस्तप्रतों की संख्या-४ है। वर्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार यह जानकारी दी गई है।...
हस्तप्रत सूचीकरण कार्य के अन्तराल में ध्यान में आई हुई जैसी भी प्रत, जिस रूप में हो, उसका योग्य रूप से परिचय देना होता...
पू. सहजकीर्ति गणि रचित सुगुरु-कुगुरुनी आ छत्रीसी छे। संवत १६८४मां कारतक सुदमां पूज्यश्रीए आ छत्रीसी रची छे। सुगुरु अने कुगुरु कोने कहेवाय ? एनी...
विवाहलो एटले ज व्याहलो। तेनो अर्थ थाय विवाह संबंधी काव्य। मध्यकाळमां विवाह संज्ञक काव्यो माटे आ काव्य प्रकार घणो प्रचलनमां होई तेमां कृष्ण-रुक्मिणी विवाह,...